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________________ हो चुके थे। उसकी स्थिति का प्रमाण तमिल भाषा के प्राचीन साहित्य में खोजा जा सकता है। तोलकाटिपयम् तमिलभाषा का सर्वाधिक प्राचीन व्याकरण ग्रन्थ है जिसे किसी जैन विद्वान् ने लिखा था। कुरल काव्य तमिल भाषा में लिखे नीति ग्रन्थों का अग्रणी रहा होगा। इसके रचयिता आचार्य कुन्दकुन्द अपरनाम एलाचार्य मानेजाते हैं। एक अन्य जैन गन्थ नालडियार का नाम भी उल्लेखनीय है जो नीति गन्थों में महत्त्वपूर्ण है। तमिल साहित्य में पांच महाकाव्य हैं - शिलप्पदिकारम, वलयापनि, चिन्तामणि, कुण्डलकेशि और मणिमेखलै। इनमें से प्रथम तीन जैन लेखकों की कृतियाँ हैं और अन्तिम दो बौद्ध लेखकों की देन है। नरिविरुत्तम भी संसार की दशा का चित्रण करने वाला एक उत्तम जैन काव्य है। इन बृहत् काव्यों के अतिरिक्त पांच लघुकाव्य भी हैं जो जैन कवियों की कृतियाँ हैं – नीलकेशि, चूड़ामणि, यशोधर कावियम्, नागकुमार कावियम् तथा उदयपान कथै। वामनमुनि का मेरूमंदरपुराणकथा, अज्ञात कवियों के श्रीपुराण और कलिंगुत्तुप्परनि जैन ग्रन्थ भी उल्लेखनीय हैं। छन्द शास्त्र में याप्यरूंगलम्कारिकै, व्याकरणशास्त्र में नेमिनाथम् और नन्नूलू, कोश क्षेत्र में दिवाकर निघण्टु, पिंगल निघण्टु, और चूड़ामणि निघण्टु तथा प्रकीर्ण साहित्य में तिरूनूरन्तादि और तिरुक्कलम्बगम्, गणित साहित्य में ऐंचूवडि तथा ज्योतिष साहित्य में जिनेन्द्र मौलि ग्रन्थ तमिल भाषा के सर्वमान्य जैन ग्रन्थ हैं। तेलगू जैन साहित्य तमिल और कन्नड़ क्षेत्र में जैनधर्म का प्रवेश उसके इतिहास के प्रारम्भिक काल में ही हो गया था। तब यह स्वाभाविक है कि आन्ध्रप्रदेश में उससे पूर्व ही जैनधर्म पहुँच गया होगा। राजराज द्वितीय के समय में आन्ध्रप्रदेश में वैदिक आन्दोलन का प्रभाव यहाँ तक हुआ कि उस समय तक के समूचे कलात्मक और साहित्यिक क्षेत्र को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया। तेलगू साहित्य के प्राचीनतम कवि ननय भट्ट ने ११वीं शती में इस तथ्य को अप्रत्यक्ष रूप में अपने महाभारत में स्वीकार किया है। श्रीशैल प्रदेश में जैनधर्म का अस्तित्व रहा है। तेलगू के समान मलयालम में भी जैन साहित्य कम मिलता है पर जो भी मिलता है वह कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। कन्नड़ जैन साहित्य कर्नाटक प्रदेश में जैनधर्म प्रारम्भ से ही लोकप्रिय रहा है। गंग, कदम्ब, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि वंशों के राजाओं, सामन्तों, सेनापतियों और मन्त्रियों Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002591
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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