________________
शती) की संघाचारविधि, रत्नशेखरसूरि (वि.सं. १५१६) का आचार प्रदीप (४०६५ श्लोक प्रमाण), राजमल्ल (१७वीं शती) कृत लाटीसंहिता आदि ग्रन्थ भी आचार विषयक हैं। भक्तिपरक साहित्य
इनके अतिरिक्त संस्कृत में कुछ ऐसे ग्रन्थ लिखे गये हैं जिनका विशेष सम्बन्ध पूजा-प्रतिष्ठा आदि से रहा है। इनकी भी संख्या कम नहीं। ये ग्रन्थ भक्तिपरक हैं। पूज्यपाद की भक्तिपरक रचनायें इस क्षेत्र में सम्भवत: प्राचीनतम रही होंगी जिनकी रचना आचार्य कुन्दकुन्द की भक्तिपरक कृतियों के आधार पर हुई। समन्तभद्र का देवागमस्तोत्र जिनस्तुतिशतक व स्वयंभूस्तोत्र, सिद्धसेन की बत्तीसियाँ, अकलंक का अकलंकस्तोत्र, वप्पिभट्टि (७४३-८३८ ई.) का चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र, धनञ्जय (८-९वीं शती) का विषापहारस्तोत्र, गुणभद्र (९वीं शती) का आत्मानुशासन, विद्यानन्दि (८-९वीं शती), का सुपार्श्वनाथस्तोत्र, अमितगति (१०वीं शती) कृत सुभाषित रत्नसंदोह, वादिराज (१०-११वीं शती) कृत एकीभाव स्तोत्र, वसुनन्दि (११वीं शती) कृत ज्ञानार्णव, आशाधर (१२-१३वीं शती) कृत सहस्रनामस्तोत्र, अर्हद्दास (१३वीं शती) कृत भव्यजनकंठाभरण, पद्मनन्दि (१४वीं शती) कृत जरीपल्लीपार्श्वनाथ स्तोत्र, वैराग्यशतक, विमलकवि (१५वीं शती)कृत प्रश्नोत्तरमाला, दिवाकरमुनि (१५वीं शती)कृत शृङ्गारवैराग्यतरंगणी आदि ग्रन्थ भक्तिपरक हैं। भक्तों ने इन संस्कृत ग्रन्थो में अपने इष्टदेव की स्तुति की है। लगभग प्रत्येक ग्रन्थ में अलंकारों ने किसी न किसी की स्तुति की है जिनका अभी तक संकलन नहीं हो पाया। सूत्रकृतांग में तो वीरस्तुति नाम का समूचा अध्याय है।
कुछ ग्रन्थ प्रतिष्ठाओं से सम्बद्ध है। “प्रतिष्ठाकल्प' नाम के ऐसे अनेक ग्रन्थों के उल्लेख मिलते हैं परन्तु उनमें से हेमचन्द्र, हस्तिमल और हरिविजय सूरि के ही प्रतिष्ठाकल्प अभी तक प्रकाश में आये हैं। इनके अतिरिक्त वसुनन्दि का प्रतिष्ठासारसंग्रह व आशाधर का प्रतिष्ठा सारोद्धार भी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं।
जैनधर्म में मन्त्र-तन्त्र की भी परम्परा रही है। सूरिमंत्र जिनप्रभसूरि का सूरिमन्त्रबृहत्कल्प विवरण, सिंहतिलकसूरि (१३वीं शती) का मन्त्रराजरहस्य, मल्लिषेण के भैरवपद्मावतीकल्प, कामचाण्डालिनीकल्प, सरस्वतीकल्प, विनयचन्द्रसूरि का दीपालिकाकल्प आदि मन्त्र-तन्त्रात्मक रचनायें प्रसिद्ध है। पंचमेरुसिद्धचक्रविधान, चतुविंशति विधान आदि विधिपरक रचनायें भी मिलती हैं। विविध तीर्थकल्प
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org