SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१ व्याकरण उपलब्ध नहीं हुआ । समन्तभद्र, वीरसेन और देवेन्द्रसूरि के प्राकृत व्याकरणों का उल्लेख अवश्य मिलता है पर अभी तक वे प्रकाश में नहीं आ पाये। सम्भव है, वे ग्रन्थ प्राकृत में रचे गये हों । संस्कृत भाषा में लिखे गये, प्राकृत व्याकरणों में चण्ड का स्ववृत्तिसहित प्राकृत व्याकरण (९९ अथवा १०३ सूत्र), हेमचन्द्रसूरि का सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन (१११९ सूत्र), त्रिविक्रम (१३वीं शती) का प्राकृतशब्दानुशासन (१०३६ सूत्र ) आदि ग्रन्थ विशेष उल्लेखनीय हैं। इन ग्रन्थों में प्राकृत और अपभ्रंश के व्याकरणविषयक नियमों-उपनियमों का सुन्दर वर्णन मिलता है । १ भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिये कोश की भी आवश्यकता होती है। कोश की दृष्टि से निरुक्तियों का विशेष महत्त्व है। उनमें एक-एक शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थों को प्रस्तुत किया गया है। प्राकृत कोशकला के उद्भव और विकास की दृष्टि से उनको समझना आवश्यक है। हेमचन्द्र की देशीनाममाला (७८३ गा० ) में ३९७ देशज शब्दों का संकलन किया गया है जो भाषाविज्ञान की दृष्टि से विशेष उपयोगी है। इसके अतिरिक्त धनपाल (सं० १०२९) का पाइयलच्छी नाममाला (२७९ गा॰), विजयराजेन्द्रसूरि (सं० १६६०) का अभिधानराजेन्द्रकोश (चार लाख श्लोक प्रमाण) और हरगोविन्ददास त्रिविकमचन्द सेठ का पाइयसद्दमहण्णव ( प्राकृत - हिन्दी ) कोश भी यहाँ उल्लेखनीय हैं। संवेदनशीलता जागृत करने - कराने के लिए छन्द का प्रयोग हुआ है । नंदियड्डु (लगभग १०वीं शती) का गाहालक्खण (९६गा० ) उल्लेखनीय प्राकृत छन्द ग्रन्थ है। गणित के क्षेत्र में महावीराचार्य का गणितसारसंग्रह तथा भास्कराचार्य की लीलावती प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। इन दोनों के आधार से उनमें उल्लिखित विषयों को लेकर ठक्कुर फेरू (१३वीं शती) ने गणितसारकौमुदी नामक ग्रन्थ रचा। उनके अन्य ग्रन्थ हैं— रत्नपरीक्षा ( १३२ गा० ), द्रव्यपरीक्षा (१४९ गाथा ) धातूत्पत्ति (५७ गा० ), भूगर्भप्रकाश आदि । यहाँ यतिवृषभ (छठी शती) की तिलोयपण्णत्ति का भी उल्लेख किया जा सकता है जिसमें लेखक ने जैन मान्यतानुसार त्रिलोक सम्बन्धी विषय को उपस्थित किया है । यह अठारह हजार श्लोक प्रमाण ग्रन्थ है। १. विशेष देखिये, आधुनिक युग में प्राकृत व्याकरण-शास्त्र का अध्ययन-अनुसन्धान डॉ॰ भागचन्द्र जैन पृ॰ २३९-२६१. Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002591
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy