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________________ में और पञ्चम चूलिका विस्तृत होने के कारण पृथक् रूप में निशीथसूत्र' के नाम से निबद्ध है। यह भाग प्रथम श्रुतस्कन्ध के उत्तरकाल का है। इस ग्रन्थ में गद्य और पद्य दोनों का प्रयोग हुआ है। इसमें मुनियों के आचार-विचार का विशेष वर्णन है। महावीर की चर्या का भी विस्तृत उल्लेख हुआ है। नियुक्तिकार की दृष्टि से द्वितीय श्रुतस्कन्ध स्थविरकृत है। महावीर का जीवन भी यहाँ चमत्कारात्मक ढंग से मिलता है। २. सूयगडंग — इसमें स्वसमय और परसमय का विवेचन है। इसे दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त किया गया है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में १६ अध्ययन हैं - समय, वेयालिय, उपसर्ग, स्त्रीपरिज्ञा, नरकविभक्ति, वीरस्तव, कुशील, वीर्य, धर्म, समाधि, मार्ग, समवशरण, यथातथ्य, ग्रन्थ आदान, गाथा और ब्राह्मण - श्रमण निर्ग्रन्थ । द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सात अध्ययन हैं – पुण्डरीक, क्रियास्थान, आहारपरिज्ञा, प्रत्याख्यानक्रिया, आचारश्रुत, आर्द्रकीय तथा नालन्दीय । प्रथम श्रुतस्कन्ध के विषय को ही यहाँ विस्तार से कहा गया है। अतः नियुक्तिकार ने इसे " महा अध्ययन" की संज्ञा दी है। इस ग्रन्थ में मूलतः क्रियावाद, अक्रियावाद, नियतिवाद, अज्ञानवाद आदि मतों का प्रस्थापन और उसका खण्डन किया गया है। यह ग्रन्थ खण्डन - मण्डन परम्परा से जुड़ा हुआ है। ३. ठाणांग इसमें दस अध्ययन हैं और ७८३ सूत्र हैं जिनमें अंगुत्तरनिकाय के समान एक से लेकर दस संख्या तक संख्याक्रम के अनुसार जैन सिद्धान्त पर आधारित वस्तु संस्थाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है। यहाँ भगवान् महावीर की उत्तरकालीन परम्पराओं को भी स्थान मिला है। जैसे नवें अध्ययन के तृतीय उद्देशक में महावीर के ९ गणों का उल्लेख है। सात निह्नवों का भी यहाँ उल्लेख मिलता है जमालि, तिष्यगुप्त, आषाढ़, अश्वमित्र, गंग, रोहगुप्त और गोष्ठामाहिल । इनमें प्रथम दो के अतिरिक्त सभी निह्नवों की उत्पत्ति महावीर के बाद ही हुई । प्रव्रज्या, स्थविर, लेखन- पद्धति आदि से सम्बद्ध सामग्री की दृष्टि से यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है। इसका समय लगभग चतुर्थ पंचम ई० शती निश्चित की जा सकती है। ४. समवायांग इसमें कुल २७५ सूत्र हैं जिनमें ठाणांग के समान संख्याक्रम से निश्चित वस्तुओं का निरूपण किया गया है। यद्यपि यहां कोई क्रम तो नहीं पर उसी Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002591
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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