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के माध्यम से रागादि विकारों की भी खुलेपन से जानकारी दी जाती है। जैन संस्कृति में कला का मूल उद्देश्य अध्यात्म की अभिव्यक्ति है और सारी अभिव्यक्तियां उसी के इर्द-गिर्द घूमती रहती हैं।
जैन साधकों ने कला और स्थापत्य को एक नया आयाम दिया है। उन्होंने मूर्तिकला, वास्तुकला, अभिलेख, पाण्डुलिपि, चित्रशैली आदि सभी क्षेत्रों को परिष्कृत किया है। हडप्पा और लोहानीपुर से प्राप्त मस्तक विहीन नग्न कायोत्सर्गी मूर्तियाँ तथा मोहनजोदड़ो से प्राप्त इसी तरह की अन्य मूर्तियों की अवस्थिति को कदाचित् मर्तिकला के क्षेत्र में जैनों का महत्त्वपूर्ण अवदान कहा जा सकता है। खारवेल के शिलालेख ने नन्दकालीन कलिंग जिन की मूर्ति का उल्लेख कर इस अवदान पर एक और हस्ताक्षर कर दिया है। मथुरा के कंकाली टीले में छिपी जैन कला सम्पदा ने तो और भी उसे समृद्ध कर दिया है। श्रवणबेलगोला की बाहुबली प्रतिमा तो विश्रुत है ही। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि शासन देवी-देवताओं के आने के बावजूद मूर्तिकला के क्षेत्र में अहिंसा का ही प्राधान्य रहा है। उसमें किसी भी मूर्ति के साथ हिंसक तत्त्व नहीं जुड़ा हुआ है। तन्त्र-मन्त्र का क्षेत्र भी अहिंसक ही रहा है।
मूर्तिकला के साथ ही गुफाओं और वास्तुकला का सम्बन्ध भी अविच्छिन्न है। बराबर, नागार्जुनी पहाड़, उदयगिरि- खण्डगिरि, रानीगुफा, गिरनार गुफायें, सोनभण्डार तथा दक्षिणापथ की मदुरै, रामनाथपुरम्, सितनवासल आदि में प्राप्त जैन गुफायें विशेष उल्लेखनीय हैं। आयागपट्ट, स्तूप, सरस्वती मूर्तियों, मन्दिर आदि के निर्माण ने वास्तुकला को और भी समृद्ध किया। नागर, वेसर और द्राविड शैलियों के साथ ही अन्य प्रादेशिक शैलियों का भी भरपूर प्रयोग जैन साधकों ने किया है। समूचे भारतवर्ष में जैन स्थापत्यकला फैली हुई है। शैलोत्कीर्ण गुफा मन्दिरों के अतिरिक्त पल्लव, चालुक्य, होयसल आदि सभी शैलियों में मन्दिरों का निर्माण हुआ है।
चित्रकला भावाभिव्यक्ति का सुन्दरतम उदाहरण है। उसमें उपदेश और सन्देश देने की अनूठी क्षमता है। जैनाचार्यों ने जैनधर्म के प्रचार में इसका समुचित उपयोग किया है। नायाधम्मकहाओ, वरांगचरित, आदिपुराण, हरिवंशपुराण आदि ग्रन्थों में चित्रकला का अच्छा वर्णन मिलता है। चित्रकला के भेदों में प्रमुख भेद है – भित्तिचित्र, कर्गलचित्र, काष्ठचित्र, पटचित्र, रंगावलि अथवा धूलिचित्र ।
प्राचीनतम भित्तिचित्र शित्तनावासल के जैन गुफा मन्दिर में मिलते हैं। वहाँ जलाशय का एक सुन्दर चित्र बनाया गया है। एलोरा और श्रवणवेलगोला के
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