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________________ मृदुता के उदाहरण मार्दव-धर्म के सन्दर्भ में अनेक उदाहरण और भी दिये जा सकते हैं, जिनमें कतिपय उद्धृत कर रहा हूँ ताकि उसकी प्रकृति को समझा जा सके और अहङ्कार के दुष्परिणामों से बचा जा सके। (१) सुदर्शन ने अर्जुनमाली को विनम्रता से जीता। (२) वर्णीजी ने आत्मकथा में एक घटना का उल्लेख किया है कि किसी सेठ ने स्वयं मन्दिर बनवाया पर उसका कलश समाज से चढ़वाया ताकि मन्दिर बनवाने का अभिमान उसे या उसके परिवार को न आ जाये। ७५ ――― (३) अहङ्कार एक प्रतिक्रिया से भरा जीवन होता है। असमर्थ व्यक्ति घर बनाता है। और समर्थ बलशाली व्यक्ति उस घर को तोड़ देता है असमर्थो गृहारम्भे समर्थो गृहभंजने । बन्दर बटेर का घोंसला उखाड़कर यही करता है । (४) भरत - बाहुबली का युद्ध मान कषाय का जीता जागता उदाहरण है। कहा जाता है कि भरत पट्टशिला पर लिखे हुए किसी नाम को मिटाकर ही अपना नाम लिख सके । अहङ्कारी यही करता है । वह दूसरे के अस्तित्व को मटियामेट कर अपने अस्तित्व पर मुहर लगाना चाहता है । (५) अहङ्कारी जब शक्तिहीन हो जाता है तो उसे कोई नहीं पूछता । नेपोलियन जैसे सम्राट् को आखिर घसियारन के लिए रास्ता देना ही पड़ा। (६) ज्ञानी और बौद्धिक में अन्तर है। प्राचीन काल में ज्ञानी को पण्डित भी कहा जाता था, जो स्वानुभूति और सम्यक् आचरण में पला था । पर आज बौद्धिक व्यक्ति ही पण्डित कहा जाता है। वह इतनी अन्तर्दृष्टि सम्पन्न होता है कि विनम्रतापूर्वक अपने अज्ञान को स्वीकार लेता है, ध्यानी होता है, जागरूक होता है। भगवान् महावीर परमज्ञानी थे । उन्होंने इन्द्रभूति के अहं को बड़े ही सहज ढंग से निरस्त किया और उसे अपना अनन्य शिष्य बना लिया। विद्वान् ज्ञानी को परास्त नहीं कर सकता, बल्कि उससे सीख सकता है। उपाध्याय यशोविजय जी द्वारा आनन्दघन को प्रणाम करना यही अभिव्यक्त करता है । (७) देवी ने सुकरात को सबसे बड़ा ज्ञानी माना पर सुकरात ने इसे स्वीकार नहीं किया, बल्कि यह कहा कि उसे मालूम है वह कितना अज्ञानी है । ज्ञानी को अज्ञानता का आभास हो जाना चाहिए । यही उसकी निरहङ्कारवृत्ति और मार्दवता है। (८) बोलने में इतना माधुर्य हो कि श्रोता को कटुता का आभास न हो। 'अक्ष्णा काणः' कहकर व्यंग बाण नहीं चलाना चाहिए। "शुष्को वृक्षः तिष्ठत्यग्रे ' उदाहरण के सन्दर्भ में लोग जानते ही हैं। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002590
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Ritual
File Size7 MB
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