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________________ ६८ (४) कर क्रोध से मुक्त हुआ जा सके। (३) चित्त-निरोध - अतीत और भविष्य से हटकर वर्तमान में रहना और मन को एकाग्र कर उसे प्रशान्त करना। ज़ेन फ़कीर को किसी ने लाठी मार दी तो उसने कहा - समस्या मारने वाले की है उसकी नहीं है। यह कथन उसी तरह से है जिस तरह बुद्ध ने कहा कि वे गाली को स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि गाली से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। अलेक्जेण्डर ने कहा – क्रोध आने पर टेबुल के नीचे हाथ बांधकर उन्हें पांच बार खोलो। इसी तरह गुर्जियेफ के पिता ने अपने पुत्र से कहा कि जब क्रोध आये तो उसे रोककर चौबीस घण्टे बाद करने का मन बनाओ। सम्भव है, इस बीच क्रोध स्वतः शान्त हो जाये। दर्पण में क्रोध की मुद्रायें देखकर उन पर विचार करो। रोना भी क्रोध न आने देने का एक उपाय है। कहा जाता है महिलाओं को दिल का दौड़ा कम आता है; क्योंकि वे रोकर अपना क्रोध और दुःख अभिव्यक्त कर देती हैं। (६) क्रोध को कल पर टाल दो। अब्राहम लिंकन ने कहा है कि क्रोध भरे पत्र का उत्तर सात दिन बाद देना चाहिए। तब तक क्रोध शान्त हो सकता है और पत्र की भाषा भी नरम हो सकती है। (७) समता भाव धारण कर निन्दा और प्रशंसा में तटस्थ रहना चाहिए। बुद्ध ने ठीक ही कहा है – जागकर क्रोध करो, जाग कर देखो कि क्रोध उठता कैसे है? (८) क्रोध आते ही मुंह में मिश्री का पानी भर लो। (९) क्रोध आने पर कागज पर बार-बार लिखो - क्रोध आ रहा है। दीर्घ श्वास लेने से भी क्रोध की मात्रा कम हो जाती है। (१०) संसार की क्षणभंगुरता पर विचार करना आदि। क्षमा के उदाहरण ___ कतिपय ऐसे साधन भी हैं, जिनसे क्रोध की मात्रा कम की जा सकती है और उनके आने पर उनसे मुक्त भी हुआ जा सकता है। क्रोध से मुक्त होने पर क्षमा भाव का आ जाना स्वाभाविक है। क्षमा राग-द्वेष से मुक्त अवस्था का नाम है इसी को ‘स्थितप्रज्ञ' भी कहते हैं। ऐसे ही स्थितप्रज्ञ महापुरुष उत्तम क्षमावान् होते हैं। ऐसे उत्तम क्षमावानों के कुछ उदाहरण इस प्रकार प्रस्तुत किये जा सकते हैं। (१) समर्थ व्यक्ति ही क्षमादान कर सकता है। लक्ष्मण ने सुग्रीव से कठोर वचन कहने पर क्षमा मांगी। उदायन ने चण्डप्रद्योत से क्षमा मांगी, जबकि उदायन विजेता Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002590
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Ritual
File Size7 MB
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