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व्यक्ति कहीं नहीं मिलता। तब गुरु कहता है- दुःख से मुक्त होने का उपाय यह है कि दूसरे की ओर न झांका जाये और स्व-पर का चिन्तन किया जाये, यही स्वानुभूति की प्रतीति है।
___ यह बात सही है कि पर पदार्थ के साथ व्यवहार स्थापित किये बिना लोक-व्यवहार नहीं चलता। पर लोक-व्यवहार अहिंसा पर आधारित होना चाहिए। हम दूसरे के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते समय उसके स्वतन्त्र अस्तित्व को अस्वीकार करने लगते हैं। हमारा चिन्तन वस्तुनिष्ठ बन जाता है, चेतननिष्ठ नहीं। यही कारण है कि ईमानदार गरीब लड़के की उपेक्षा की जाती है और किसी भी गलत या सही साधनों के माध्यम से कमाने वाले लड़के को महत्त्व दे दिया जाता है।
जीवन में इन विशृङ्खलताओं के कारण परिवार और समाज के बीच मनोमालिन्य बढ़ जाता है, क्रोध, ईर्ष्या आदि विकार भावों से मन उत्तेजित हो उठता है। इन भावों का मूल स्थान है डक्टलेस ग्लेण्ड्स। क्रोधादि आवेग सीधे रक्त में चले जाते हैं और उनसे बिटा तरंगें प्रभावित होती हैं जिससे अवसाद का जन्म होता है, परन्तु अल्फा तरंगों से व्यक्ति आनन्द से भर जाता है और ये अल्फा तरंगें सद्भावों से पनपती हैं। आचार्य स्थूलभद्र 'कोशा' नामक गणिका के घर चातुर्मास कर बेदाग वापिस लौटे इन्हीं अल्फा तरंगों के प्रभाव से। राकफेलर ने भी मूर्छा त्यागकर नया जीवन पाया। धर्म सद्भावों के माध्यम से अल्फा तरंगों को पैदाकर ऐसा ही नया जीवन प्रदान करता है। क्षमा : अर्थ और प्रतिपत्ति
क्षमाधर्म ऐसे ही विधायक भावों के बीच पनपता है। क्रोध का कारण उपस्थित रहने पर जो थोड़ा भी क्रोध नहीं करता उसको यह क्षमा धर्म होता है। पूज्यपाद ने क्षमा के स्थान पर ‘क्षान्ति' शब्द का प्रयोग किया है और उसे क्रोधादि से निवृत्ति रूप माना है (स०सि०६.१२)। सिद्धसेनगणि और अभयदेव ने भी क्षान्ति की यही व्याख्या की है। ___आचार्य कुन्दकुन्द, उमास्वामी (उमास्वाति), कार्तिकेय जैसे आचार्यों ने 'क्षमा' शब्द का प्रयोग किया है और उसे 'क्षान्ति' का समानार्थक माना है। पर सिद्धसेनगणि ने क्षमा और क्षान्ति में कुछ अन्तर किया है। उन्होंने क्रोध निवृत्ति को 'क्षान्ति' कहा है और सहन करने को 'क्षमा' कहा है। आवश्यकचूर्णि में क्षमा, तितिक्षा और क्रोधनिरोध को समानार्थक माना गया है। तद्नुसार आक्रोश, ताडन आदि को सहन करना, क्रोधोदय का निग्रह करना और उदय में आये हुए क्रोध को विफल करना क्षमा है। क्षमा के इन सब लक्षणों में कोई विशेष अन्तर नहीं है। उन सबमें क्षमा की व्याख्या ही देखी जा सकती है।
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