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का ग्रन्थ-Jainism in Buddhist Literature, नागपुर, १९७२।। २७. षटखण्डागम, भाग ९, पृष्ठ १२९। २८. विशेषावश्यकभाष्य, १५४०-६०। २९. वही, १६१०-१४। ३०. वही, १६५०-१६५४। ३१. वही, १६९०-१७६८। ३२. वही, १७७०-१८०९। ३३. वही, १८०३-१८६०। ३४. वही, १८६७-१८८३। ३५. वही, १८८८-१८९०। ३६. वही, १९०८-१९४७।। ३७. उत्तरपुराण, ७४, ३७३-३७४। ३८. कल्पसूत्र, १३३-१४४; उत्तरपुराण ७४, ३७३-३७९, तिलोयपणत्ति
४.११६६-११७६; हरिवंशपुराण, ६०,५३२-४४०, यहाँ कहीं-कही श्रावकों की संख्या एक लाख और श्राविकाओं की संख्या तीन लाख भी बतायी
गई है। ३९. कल्पसूत्र, १२६; उत्तरपुराण।
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