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________________ दश स्वप्न : भविष्यबोध उस समय लगभग एक मुहूर्त रात्रि शेष थी। महावीर ध्यानस्थ खड़े थे। फिर भी क्षणभर के लिए उन्हें निद्रा आ गई। इस बीच उन्होंने निम्नलिखित दश स्वप्न देखे १. ताल-पिशाच को स्वयं अपने हाथ से गिराना। २. श्वेत पुंस्कोकिल की सेवा में उपस्थित होना। ३. विचित्र वर्णवाला पुंस्कोकिल सामने दिखाई देना। ४. सुगन्धित दो पुष्पमालायें दिखाई देना। ५. श्वेत गो-समुदाय का दिखाई देना। ६. विकसित पद्म सरोवर का दर्शन। ७. स्वयं को महासमुद्र पार करते देखना। ८. दिनकर किरणों को फैलते हुए देखना। ९. अपनी आँतों से मानुषोत्तर पर्वत को वेष्ठित करते हुए देखना, और १०. स्वयं को मेरु पर्वत पर चढ़ते हुए देखना। अस्थिग्राम में ही एक उत्पल नामक निमित्तज्ञानी था जो पार्श्वनाथ की परम्परा का अन्यायी था। यक्षायतन में महावीर के ठहरने का समाचार सुनकर वह अपने आशंकाओं की सम्भावना से चिन्तित हो उठा। प्रातःकाल होते ही वह इन्द्रशर्मा नामक पुजारी के साथ भगवान् महावीर के दर्शन करने आया। साथ ही बड़ा भारी जनसमुदाय भी था। महावीर को सकुशल पाकर सभी को आश्चर्य और प्रसन्नता हुई। निमित्तज्ञ उत्पल ने महावीर के स्वप्नों का फल क्रमश: इस प्रकार बताया १. आप मोहनीय कर्म का विनाश करेंगे। २. आपको शुक्लध्यान की प्राप्ति होगी। ३. आप विविध ज्ञानरूप द्वादशांग श्रुत की प्ररूपणा करेंगे। ४. चतुर्थ स्वप्न का फल उत्पल नहीं समझ सका। ५. चतुर्विध संघ की आप स्थापना करेंगे। ६. चारों प्रकार के देव आपकी सेवा में उपस्थित रहेंगे। ७. आप संसार सागर को पार करेंगे। ८. आप केवलज्ञान प्राप्त करेंगे। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002590
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Ritual
File Size7 MB
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