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________________ २३ प्रथम बाईस तीर्थङ्कर प्रागैतिहासिक काल के हैं। उस समय का धर्म प्राकृतिक धर्म था, प्रतर्तित नहीं था। महावीर ने उसका प्रवर्तन किया प्राचीन परम्परा के आधार पर। उनका धर्म अनुभूत धर्म है। आचार्य और उपदेष्टा हजारों हुए पर प्रवर्तक केवल चौबीस हुए। तीर्थङ्कर परम्परा का प्रवर्तक होता है और आचार्य परम्परा का संचालक होता है. तीर्थकर का प्रतिनिधि होता है। तीर्थङ्कर किसी परम्परा का प्रतिपादक ही नहीं होता, वह स्वयंबुद्ध भी होता है और अपने अनुभव के आधार पर धर्म का निरूपण करता है। इसलिए प्रत्येक तीर्थङ्कर को आदिकर और प्रवर्तक माना जाता है। वे धर्मचक्र का प्रवर्तन करते हैं। ऐसे चौबीस तीर्थङ्कर हुए हैं जो प्रवर्तक कहे जा सकते हैं। उनका आधार रहा है शान्ति स्थापन। जे य बुद्धा अईक्कंता, जे य बुद्धा अणागया। संती तेसि पइट्ठाणं, भूयाणं जगई जहा।। धर्म का लक्षण है सत्य। महावीर की परम्परा निर्वाणवादी परम्परा थी, स्वर्गवादी परम्परा के विपरीत। यह पदार्थातीत चेतना के विकास का सिद्धान्त है। जैनधर्म कैवलिक है, आत्मा का अनुभव जिसे हो गया उसके द्वारा कथित धर्म है। वह दुःखमुक्ति का मार्ग बताता है। महावीर के पहले वह निर्ग्रन्थ प्रवचन और उसके पहले अहिंसा धर्म कहा गया। पार्श्व तक अर्हत् कहा गया और फिर महावीर को श्रमण कहा गया, निर्ग्रन्थ कहा गया। यह परिवर्तन इतिहास में होता रहता है, पर सभी तीर्थङ्कर निर्वाणवादी रहे हैं। इसी निर्वाणवादी परम्परा को हम आज जैनधर्म के नाम से जानते हैं। पालि साहित्य में महावीर को 'निगण्ठो नातपुत्तो' कहा गया है और उनके अनुयायियों की आलोचना की गई है। महावीर की तो प्रशंसा ही वहां मिलती है। इसके विपरीत जैनागमों में बुद्ध की कहीं भी आलोचना नहीं की गई है। इससे भी स्पष्ट है कि जैनधर्म बौद्धधर्म परम्परा से प्राचीन है। ____चौबीस तीर्थङ्करों की यह जैन परम्परा नन्दीसूत्र (२०-२१), आवश्यक (द्वितीय), भगवतीसूत्र (२०..८), समवायांग (२४८) और कल्पसूत्र आदि ग्रन्थों में भलीभाँति मिलती है। ये ग्रन्थ भले ही लगभग पाँचवीं शताब्दी के माने जाते हैं पर उनकी परम्परा प्राचीन सूत्र से जुड़ी हुई है। पुरातात्त्विक उपलब्धियों में मोहनजोदड़ों में प्राप्त ऋषभदेव योगी की नग्न मर्ति को छोड़ भी दिया जाये तो प्राचीनतम निर्विवाद जैन मूर्ति लोहानीपुर (पटना) से प्राप्त हुई ही है। वहीं से एक और मूर्ति मिली है जो लगभग प्रथम सदी ई०पू० की है। हाथीगुम्फा शिलालेख 'कलिंग जिन' का उल्लेख करता ही है। प्रिन्स ऑफ वेल्स Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002590
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Ritual
File Size7 MB
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