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९७ निर्जरा को आश्रय देता है। अत: सामायिक और ध्यान संयम के अपरिहार्य तत्त्व हैं।
साध्य प्राप्ति का क्षण भले ही छोटा हो पर उसकी प्रक्रिया बहुत बड़ी होती है। दही से मक्खन निकालना एक श्रमसाध्य कार्य है। वह बिना लगातार मन्थन के निकलता नहीं है। इसी तरह कहं चरे? कहं सिढे? के उत्तर में "जयं चरे जयं तिढे' की उपासना हो, कर्म और अकर्म में सन्तुलन हो, शरीर और मन का सन्तुलन हो। आदमी केवल सुनता ही नहीं है, वह धारणायें भी बना लेता है जो उसके जीवन को यथावत् घुमाती रहती हैं। इसलिए मन को संयमित करना संयम की सही साधना है।
यह संयम एक तो सावध योगों सम्पूर्ण निवृत्ति के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और दूसरा अंश निवृत्ति के अर्थ में। इन दोनों को क्रमश: सकल चारित्र और देश चारित्र कहा जाता है। साधारण श्रावक देश चारित्र का पालन करता है। चारित्र में प्रवृत्ति ही संयम है। संयम का सारा विधान इसी के अन्तर्गत हो जाता है। संयम : निषेध से विधेय की ओर
संयम का सम्बन्ध हिंसा से है। हमारा सारा जीवन हिंसा से भरा हआ है। चौबीस घण्टे मन सोते-जागते हिंसा में लीन है। वह हिंसा छोटी हो या बड़ी हो, हिंसा बिना जीवन आगे नहीं बढ़ता। जीवेषणा जीवन का आधार है। इसी जीवेषणा मूलक जीवन को बचाने के लिए ही हिंसा का जन्म होता है। हिंसा के कृत्य में 'मैं' ही मुख्य रहता है और 'मैं' की पर्ति में ही सारे कर्म उत्पन्न होते हैं। दूसरे को पराजित करने में ही रस आता है। रस आये बिना किसी को जीतने में भी आनन्द नहीं आता। ऐसा आनन्द टिकाऊ नहीं होता।
संयम का साधारणत: अर्थ निरोध या दमन लिया जाता है, जो सही नहीं है। दमन में मन को मारा जाता है, दबाया जाता है जबरदस्ती। यह उसका मात्र निषेधात्मक रूप है, जो ऊपरी है, भीतरी नहीं है। हम संयम के ऊपरी रूप को ही पकड़ते हैं, भीतर जाने का प्रयत्न नहीं करते। संयम वस्तुत: निषेध से विधेय की ओर जाने का नाम है। मन पर नकेल लगाना मात्र निषेध से सम्भव नहीं, विधेयात्मकता उसमें जुड़ी
संयम का सम्बन्ध वृत्तियों को सम्भालना है, वृत्तियों की शक्ति से परिचित होकर आत्मशक्ति का परिचय देना है। संयम को 'कण्ट्रोल' कह देना उचित नहीं होगा। हां, उसका अनुवाद 'ट्रेन्क्किलिटी' शब्द देकर किया जा सकता है। निष्कम्पता और स्थितिप्रज्ञता अर्थ बिना सही संयम नहीं हो सकता।
__ सही संयम में मन धुरी पर रहता है, निषेध की अति पर नहीं रहता। वहां मन समाप्त हो जाता है, निर्मन हो जाता है। निर्मन हुए आदमी की कोई जिन्दगी नहीं होती।
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