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________________ आत्मवाद हिन्दुस्तान में दो परम्पराएं बहुत प्राचीन हैं। एक है श्रमण-परम्परा और दूसरी है ब्राह्मण-परम्परा। दोनों का इतिहास बहुत पुराना है। दोनों स्वतंत्र परम्पराएं रही हैं। जैन श्रमण-परम्परा को मानते हैं। भागवत का उल्लेख है-'भगवान ऋषभ ने श्रमणों का धर्म बताने के लिए ही जन्म धारण किया था।' श्रमण-परम्परा का ऐतिहासिक काल तीन हजार वर्ष पुराना है । भगवान पार्श्व और भगवान महावीर दोनों ऐतिहासिक व्यक्तित्व रहे हैं। प्रागऐतिहासिक काल बहुत पुराना है । उसका प्रारम्भ बिन्दु हैभगवान ऋषभ का अवतरण । इस काल-चक्र में भगवान ऋषभ जैन परम्परा के पहले तीर्थकर हैं। उन्होंने श्रमण-धर्म का प्रवर्तन किया। मध्यकाल में श्रमणों के अनेक सम्प्रदाय बने । भगवान महावीर के काल में श्रमणों के अनेक सम्प्रदाय थे। उनमें जैन, बौद्ध, आजीवक, परिव्राजक आदि मुख्य थे। वर्तमान में दो संप्रदाय रहे हैं----जैन और बौद्ध । सांख्य पहले अवैदिक था, श्रमण परम्परा में था, किन्तु बाद में उसका रूप बदल गया। जैनधर्म के प्राचीन नाम जैन श्रमण-परम्परा का एक धर्म है । उसके अनेक नाम प्रचलित रहे हैं-अर्हत्-धर्म, निर्ग्रन्थ-धर्म और वर्तमान में नाम प्रचलित है जैन धर्म। . भगवान ऋषभ अर्हत् थे। उनके लिए एक विशेषण आता है—'अर्हत् ऋषभ' । अर्हतों की एक परम्परा रही है। जो अपनी साधना के द्वारा अतीन्द्रिय ज्ञान को प्राप्त कर लेते थे और जीवन-मुक्त अवस्था में चले जाते थे, वीतराग की स्थिति में चले जाते थे, वे अर्हत् कहलाते थे । भगवान ऋषभ अर्हत थे अत: उनका धर्म आहेत् धर्म कहलाया। भगवान् महावीर श्रमण निर्ग्रन्थ के नाम से प्रख्यात थे । बौद्ध-साहित्य में निर्ग्रन्थ ज्ञानपुत्र महावीर का नाम मिलता है। अन्य २३ तीर्थंकरों के लिए अर्हत् विशेषण मिलता है, इन सबको अर्हत् कहा गया। महावीर को अर्हत् नहीं कहा गया। महावीर का विशेषण है ‘समणे निग्गंथे नायपुत्ते।' हो सकता है—महावीर ने अचेल साधना की थी, निर्वस्त्र साधना की थी। इसलिए उनके लिए निर्ग्रन्थ विशेषण का Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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