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स्याद्वाद और सद्वाद / ७९ नित्यता और अनित्यता का अनेक बार प्रतिपादन किया था। शेष सब भंग विशेष अपेक्षा के आधार पर संयोजित किए गए हैं। तीसरे भंग में नित्य और अनित्य इन दो धर्मों का क्रमिक प्रतिपादन है । चौथे भंग में युगपत् दो धर्मों का प्रतिपादन हो नहीं सकता, इसलिए इसे अवक्तव्य कहा गया। शेष तीन भंग पूर्ववर्ती प्रथम तीन भंगों के साथ अवक्तव्य का संयोग करने से बनते हैं। द्रव्यगत द्वैतवाद
नित्यत्व द्रव्य का धौव्य अंश है । अनित्यत्व उसका उत्पाद-व्ययात्मक पर्याय अंश है। वेदान्त के अनुसार पारमार्थिक तत्त्व नित्य है। बौद्ध दर्शन के अनुसार नित्यत्व गुण सम्पन्न कोई द्रव्य नहीं है। अस्तित्व सर्वथा अनित्य है। अनेकान्त का सिद्धान्त इन दोनों (वेदान्त और बौद्ध) से भिन्न है। उसके अनुसार प्रत्येक द्रव्य के नित्यत्व और अनित्यत्व अपरिहार्य अंग हैं। यह सिद्धान्त वेदान्त और बौद्ध के सिद्धान्तों का समन्वय करने की दृष्टि से प्रतिपादित नहीं है । इसका आधार है-द्रव्यगत द्वैतवाद । जैसे द्रव्य में द्वैत है, वैसे ही द्रव्यों में होने वाले गुणों में भी द्वैत है । नित्यत्व और अनित्यत्व—ये दोनों गुण अकेले नहीं होते। दोनों साथ ही होते हैं। यह गुणाश्रित द्वैतवाद दोनों गुणों के साथ होने का आधार बनता है। नित्यत्व परोक्ष गुण है। वह हमारे सामने स्पष्ट नहीं है। अनित्यत्व हमारे सामने स्पष्ट है इसलिए वह प्रत्यक्ष गुण है। केवल ज्ञानी के लिए नित्यत्व और अनित्यत्व—दोनों प्रत्यक्ष होते हैं । इन्द्रियज्ञानी अनित्यत्व के आधार पर नित्यत्व का अनुमान करता है। लंबाई-चौड़ाई की अवधारणा
लम्बाई और चौड़ाई-पौगलिक पदार्थ के पर्याय माने जाते हैं। अनेकान्त के अनुसार लम्बाई-चौड़ाई की धारणा सापेक्ष है । आइन्स्टीन के अनुसार यह गति सापेक्ष है। एक व्यक्ति साइकिल पर चल रहा है। उसे मार्ग में आने वाली वस्तुएं जिस रूप में हैं, उसी रूप में दिखाई देंगी। एक व्यक्ति ट्रेन में यात्रा कर रहा है। उसे आने वाली वस्तुएं छोटी दिखाई देंगी। आणविक वाहन में यात्रा करने वाले को वे दिखेंगी ही नहीं। अतीत, भविष्य और वर्तमान प्रश्न ____ मन:पर्ययज्ञानी—दूसरों के मन को पढ़ने वाला अतीत और अनागत के विचारों को भी पढ़ लेता है । वह चिन्तित, चिन्त्यमान और अचिन्तित–तीनों कालों के विचारों को पढ़ सकता है । चिन्त्यमान पुद्गलों को जाना जा सकता है । चिन्तित (अतीतकालीन)
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