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विचार की आधारभत्ति : नयवाद / ६१ कैसे अर्थ माने जाते हैं, उन सबको यह दृष्टि मान्य करती है।
इसका तीसरा आधार संकल्प है। संकल्प की सत्यता नैगम दृष्टि पर निर्भर है। भूत को वर्तमान मानना-जो कार्य हो चुका, उसे हो रहा है ऐसा मानना सत्य नहीं है। किन्तु संकल्प या आरोप की दृष्टि से सत्य हो सकता है।
इसके तीन रूप बनते हैं१. भूत पर्याय का वर्तमान पर्याय के रूप में स्वीकार (अतीत में वर्तमान का
संकल्प)-भूत नैगम है। २. अपूर्ण वर्तमान का पूर्ण वर्तमान के रूप में स्वीकार (अनिष्पन्नक्रिय वर्तमान
में निष्पन्नक्रिय वर्तमान का संकल्प)-वर्तमान नैगम है। ३. भविष्य पर्याय का भूत पर्याय के रूप में स्वीकार (भविष्य में भूत का ___ संकल्प)-भावी नैगम है।
जन्मदिन मनाने की सत्यता भूत नैगम की दृष्टि से है । रोटी पकानी शुरू की है। किसी ने पूछा-आज क्या पकाया है ! उत्तर मिलता है-'रोटी पकायी है।' रोटी पकी नहीं है, पक रही है, फिर भी वर्तमान नैगम की अपेक्षा 'पकाई है' ऐसा कहना सत्य है। नैगमनय : भेद और कार्य
क्षमता और योग्यता की अपेक्षा अकवि को कवि, अविद्वान् को विद्वान् कहा जाता है। यह तभी सत्य होता है जब भावी का भूत में उपचार है । इस अपेक्षा को न भूलें। नैगम के तीन भेद होते हैं
१. द्रव्य नैगम। २. पर्याय नैगम।
३. द्रव्य पर्याय नैगम। इसके कार्य का क्रम यह है
१. दो वस्तुओं का ग्रहण। २. दो अवस्थाओं का ग्रहण।
३. एक वस्तु और एक अवस्था का ग्रहण । अनेकान्त दृष्टि का प्रतीक
नैगमनय जैन दर्शन की अनेकान्त दृष्टि का प्रतीक है। जैन दर्शन के अनुसार
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