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३८ / जैन दर्शन और अनेकान्त
है कि काल में स्थिति का परिवर्तन कैसे होता है । अतएव न्यूयार्क से शिकागो जाने वाली एक्सप्रेस गाड़ी का एक सही चित्र प्रस्तुत करने के लिए इतना कह देना ही काफी नहीं है कि वह न्यूयार्क से अलबानी, वहां से सिराक्यूस, फिर वहां से टोलेडो तथा उसके बाद शिकागो जाती है बल्कि यह बतलाना जरूरी है कि उन स्थानों पर वह किस समय पहुंचती है । यह कार्य या तो समय-सारिणी से पूरा हो सकता है या दृश्य - चित्र से । यदि न्यूयार्क और शिकागो के बीच के मील, एक लकीर खींचे हुए कागज पर नीचे की ओर निश्चित किए जाएं, घण्टे तथा मिनट लम्बित रूप में दिखाये जाएं और पृष्ठ के कोने से सामने के दूसरे कोने तक एक रेखा खींचकर मार्ग-आलेख प्रदर्शित किया जाए तो द्विविस्तारात्मक आकाश-काल अखण्डता में गाड़ी की प्रगति प्रदर्शित होगी। इस तरह के नक्शों से अधिकांश समाचार-पत्र पाठक परिचित हैं। उदाहरणस्वरूप स्टॉक मार्केट का नक्शा द्विविस्तारात्मक डॉलर - काल अखण्डता में आर्थिक घटनाओं को प्रकट करता है । इसी तरह न्यूयार्क से लास एंजिल्स जाने वाले एक विमान की उड़ान को एक चतुर्विस्तारात्मक आकाश-काल अखण्डता में चित्रित किया जा सकता है। यह तथ्य कि विमान 'क्ष' अक्षांश, 'य' देशान्तर और 'झ' ऊंचाई पर है, विमान कम्पनी के यातायात व्यवस्थापक के लिए कोई महत्त्व नहीं रखता, यदि सम्बन्धित काल की जानकारी न हो । अतएव काल चौथा विस्तार है और यदि कोई उड़ान को उसके सम्पूर्ण रूप में एक प्राकृतिक यथार्थता के रूप में देखना चाहता है तो इसे पृथक् पृथक उड़ान, चढ़ाई, सरकाव और उतार के रूप में नहीं बांटा जा सकता। इसे तो एक चतुर्विस्तारात्मक आकाश काल अखण्डता के / रूप में ही सोचना पड़ेगा ।'
पंचास्तिकाय निरपेक्ष सत्य है
दिक् और काल— इन दो सापेक्ष सत्यों को न लें तो निरपेक्ष सत्य पांच अस्तिकाय हैं । इनका अस्तित्व न तो हमारी चेतना में है और न एक-दूसरे की तुलना में अद्भुत है, किन्तु स्वतन्त्र है । इन भिन्न-भिन्न रूपों में अवस्थित अस्तिकायों और उनके कार्यों का जो समवाय है, वही विश्व है ।'
९. डॉ. आइन्स्टीन और ब्रह्माण्ड, पृ० ७२-७४
२. किमियं भंते! लोएति पवृच्चाई ? गोयमा ! पंचत्थिकाया, एसणं एवतिए लोएति पवुच्चई ।
- भगवती सूत्र, १३/५५
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