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________________ स्याद्वाद और जगत् । ३५ स्वाभाविक और वैभाविक (बाह्य निमित्तज) दोनों प्रकार के परिवर्तन होते हैं। पुद्गली जीव का अस्तित्व ही हमारे प्रत्यक्ष है। पुद्गल-मुक्त जीव हमारी ज्ञान-धारा से परे हैं। आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन–छहों पर्याप्तियां पौद्गलिक हैं। इन्हीं के द्वारा जीव व्यक्त या ज्ञेय बनता है । दृश्य-जगत् जो है, वह पौद्गलिक है, किन्तु इसका निमित्त जीव ही है । सूक्ष्मस्कन्ध हमारी दृष्टि के विषय नहीं बनते । हमारी दृष्टि में आ सकें, इतनी स्थूलता उन्हें जीव के द्वारा ही प्राप्त होती है। जितने पुद्गल-दृश्य हैं, वे या तो जीव के शरीर-रूप में परिणत हैं या हो चुके हैं।' ___ज्ञान, दर्शन, सुख-दुःख की अनुभूति, वीर्य-ये जीव के गुण या कार्य हैं।' शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श-ये पुद्गल के गुण या कार्य हैं।' शब्द, आतप, उद्योत आदि संहति-रहित पदार्थ (Marsless matter) अथवा ऊर्जारूप (Energy) हैं। लिबनिज का अभिमत दृश्य-पदार्थ का मूल (Ultimate Constituent) परमाणु है। उनकी अनेक वर्गणाएं ( सजातीय, परमाणु समूह) हैं । वे मौलिक कण (Elementary Particles) समुदित होकर पदार्थ का निर्माण करते हैं । बाह्य निमित्तों से अथवा निश्चित काल-मर्यादा के अनुसार एक पदार्थ दूसरे पदार्थ में परिवर्तित भी हो जाता है। पुद्गल की विचित्र परिणति के कारण विश्व की व्यवस्था अनन्तरूपी है। महान् जर्मन गणितज्ञ लिबनिज ने लिखा है- 'मैं यह प्रमाणित कर सकता हूं कि न केवल प्रकाश, रंग, ताप और इस तरह की अन्य चीजें, अपितु गति, आकार और विस्तार भी वस्तु के ऊपरी गुण हैं । उदाहरण-स्वरूप, जैसे हमारी दृश्यशक्ति यह बतला देती है कि वह गोल, चिकनी और छोटी है । ये ऐसे गुण हैं, जो हमारी इन्द्रियों से पृथक् होने पर उस गुण से अधिक यथार्थता नहीं रखते, जिसे हम परम्परानुसार सफेद की संज्ञा देते हैं। बर्कले का कथन बर्कले ने कहा है-'वे सभी तत्त्व जिनसे इस संसार का ढांचा तैयार हुआ है, मानस को छोड़ देने के बाद कोई तथ्य नहीं रखते। जब तक हम उन्हें इन्द्रियों से १. आचारांग वृत्ति, १/१ २. उत्तराध्ययन अध्ययन २८/१०-११ ३. वही, २८-१२ ४.म. माइन्स्टीन और ब्रह्माण्ड १०१७ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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