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३२ / जैन दर्शन और अनेकान्त
ध्वनि कहते हैं । अतः जब परीक्षणों से यह व्यक्त हुआ कि प्रकाश शून्य से भी होकर विचर सकता है, तब वैज्ञानिकों ने 'ईथर' (Ether) नामक एक काल्पनिक तत्त्व को जन्म दिया, जो उनके विचार में समस्त आकाश और पदार्थ में व्याप्त है । बाद में फैरेड ने एक अन्य प्रकार के ईथर का प्रतिपादन किया, जिसे विद्युत एवं चुम्बकीय शक्तियों के वाहक के रूप में माना गया । अन्ततः जब मैक्सवेन ने प्रकाश को एक 'विद्युत चुम्बकीय विक्षोभ' (Electromagnetic Disturbance) के रूप में मान्यता प्रदान की, तब ईथर का अस्तित्व निश्चित-सा हो गया ।'
आकाश है आधार
स्थिरता का माध्यम स्थिति तत्त्व है । एक परमाणु आकाश-प्रदेश में स्थित होता है, वहां उसका माध्यम स्थिति-तत्त्व ही होता है ।
आकाश स्थिति का माध्यम नहीं है । वह चर और स्थिर, दोनों तत्त्वों का माध्यम हैं। आधार - शून्य कुछ भी नहीं है । स्थूल पदार्थ के लिए स्थूल आधार होते हैं । सूक्ष्म या चतुःस्पर्शी स्कन्धों के लिए स्थूल आधार की अपेक्षा नहीं होती । उनका जो आधार है, वह आकाश ही है। एक पदार्थ की दूसरे पदार्थ से जो दूरी है, उसका आकाश ही है । इसके बिना सब पदार्थ स्वावगाही नहीं होते ।
ये तीन अस्तिकाय अरूपी हैं, इन्द्रियातीत हैं । ये विश्व व्यवस्था की अनिवार्य अपेक्षा से स्वीकृत हैं । गति, स्थिति और अवगाह (या विभाग) इन असाधारण गुणों से गति-तत्त्व (धर्मास्तिकाय), स्थिति-तत्त्व (अधर्मास्तिकाय) और अवगाह-तत्त्व (आकाशास्तिकाय) का अस्तित्व प्रमाणित होता है ।
पुगल : स्वतंत्र सत्ता का आधार
संघात और भेद भी असाधारण गुण हैं। चार अस्तिकायों में केवल संघात है, भेद नहीं है । भेद के पश्चात् संघात और संघात के पश्चात् भेद - यह शक्ति केवल पुद्गलास्तिकाय में है । दो परमाणु मिलकर द्वि-प्रदेशी, यावत् अनन्त परमाणु मिलकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध बन जाते हैं । वे वियुक्त होकर पुनः दो परमाणु यावत् अनन्त परमाणु हो जाते हैं । यदि संयोग-वियोग गुण नहीं होता तो यह विश्व या तो एक पिण्ड ही होता या केवल परमाणु ही होते । उन दोनों रूपों में से वर्तमान विश्व व्यवस्था फलित नहीं होती । पुद्गल द्रव्य रूपी है, इन्द्रियगम्य है, इसलिए इसका अस्तित्व बहुत स्पष्ट है,
ष्ठ७.२रु
१. डॉ. आइन्स्टीन और ब्रह्माण्ड, लिंकन बारनेद पृ. ४२ ।
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