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द्वैतवाद / १५ निश्चय नय इन्द्रिय सीमा को पार कर केवल आत्मा से होने वाला अतीन्द्रिय ज्ञान है। इसलिए वह व्यक्त पर्याय (व्यंजन पर्याय अथवा द्रव्य का वर्तमान स्थूल पर्याय) को भेदकर द्रव्य के मूल स्वरूप तक पहुंच जाता है। चीनी पुद्गल का एक व्यक्त पर्याय है। निश्चय नय से जानने वाले के लिए चीनी केवल सफेद रंग और मिठास वाली नहीं है । वह एक पौद्गलिक स्कन्ध है जिसमें प्रत्यक्ष हो रहे हैं, पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श-पुद्गल के मौलिक गुण ।
निश्चय नय से जानने वाला द्रव्य के विभिन्न पर्यायों को मौलिक द्रव्य नहीं मानता । किंतु वह मूल द्रव्य को ही द्रव्य के रूप में स्वीकृति देता है । इसलिए उसकी दृष्टि में द्रव्य का जगत् सिकुड़ जाता है, अभेद प्रधान बन जाता है।
व्यवहार नय बाह्य माध्यमों की सहायता से होने वाला इन्द्रिय ज्ञान है । इसलिए वह अव्यक्त पर्याय की सीमा में प्रवेश नहीं कर पाता, केवल व्यक्त पर्याय को ही जान पाता है। चीनी में सभी वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होते हैं, फिर भी व्यवहार नय से जानने वाला उसके व्यक्त पर्याय (सफेद रंग और मिठास) को ही जान पाता है। उसमें द्रव्य के मूल स्वरूप तक पहुंचने की क्षमता नहीं होती। अतः व्यवहार नय की दृष्टि का जगत् बहुत बड़ा होता है । वह व्यक्त पर्याय के आधार पर प्रत्येक द्रव्य को स्वतन्त्र रूप से स्वीकार कर लेता है। इसमें भेद प्रधान बन जाता है। भेदः अभेद
अनेकान्त के अनुसार द्वैत और अद्वैत, भेद और अभेद के आधार पर प्रतिष्ठित हैं । द्वैत के बिना अद्वैत और अद्वैत के बिना द्वैत नहीं हो सकता । अभेद का चरम-बिन्दु है अस्तित्व। उसकी अपेक्षा अद्वैत सिद्ध होता है। अपने-अपने विशेषगुण की अपेक्षा से द्वैत सिद्ध होता है। जैसे दो द्रव्यों में अभेद और भेद का संबंध पाया जाता है, वैसे ही एक द्रव्य में अभेद और भेद-दोनों पाए जाते हैं। गुण और पर्याय द्रव्य (द्रव्य की प्रदेश राशि) में होते हैं, उसके बिना नहीं होते। इस अपेक्षा से द्रव्य तथा गुण और पर्याय में परस्पर अभेद है। जो द्रव्य है वह गुण नहीं है और जो गुण है वह पर्याय नहीं है। इस अपेक्षा से तीनों-द्रव्य, गुण और पर्याय में भेद है। एक ही द्रव्य द्रव्य की दृष्टि से एक और पर्याय की दृष्टि से अनेक है। द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से द्रव्य एक या अखंड है। पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से द्रव्य में प्रदेश, गुण और पर्याय होते हैं, अतः वह अनेक है। धौव्य द्रव्य का शाश्वत अंग है । उत्पन्न होना और विनष्ट होना-ये द्रव्य के अशाश्वत अंग हैं। द्रव्य-जगत् का यह सार्वभौम नियम है कि ध्रौव्य के बिना उत्पाद और व्यय नहीं होते तथा उत्पाद और व्यय से
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