SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ / जैन दर्शन और अनेकान्त निर्वाण में चैतन्य पूर्ण प्रज्ज्वलित हो जाता है। वहां चैतन्य का पूर्ण विकास है। . चैतन्य के अतिरिक्त वहां और कुछ है ही नहीं। अस्तित्व समाप्त नहीं होता ___जैनदर्शन का निर्वाण स्वतंत्र अस्तित्व का निर्वाण है । कुछ दार्शनिक मानते हैं कि निर्वाण होने के पश्चात आत्मा का विलय हो जाता है, अस्तित्व समाप्त हो जाता है। ईश्वरवादी मानते हैं—निर्वाण होने पर आत्मा ईश्वर में विलीन हो जाती है। ब्रह्मवादी मानते हैं—आत्मा ब्रह्ममय बन जाती है । उसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहता। जैनदर्शन ने निर्वाण में न आत्मा का अभाव माना, न विलय माना, न सहवास माना और न सामीप्य माना, किन्तु उसका स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकृत किया। प्रत्येक आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व है। जैनदर्शन की भाषा में ऐसा कोई ईश्वर नहीं है, जो सबको विलीन कर सके । प्रत्येक मुक्त आत्मा ईश्वर है। किन्तु ऐसा नहीं होता कि एक ईश्वर है और उसमें दूसरी मुक्त आत्माएं विलीन हो जाएं । जैनदर्शन में ऐसा भेद स्वीकार्य नहीं है । उसके अनुसार सबका समान अस्तित्व है, सबका समान चैतन्य है और सबका समान आनन्द है । यह आनन्दमय, चैतन्यमय, स्वतंत्र अस्तित्व से युक्त निर्वाण शक्ति-शून्य नहीं है। निर्वाण में शक्ति का चरम विकास होता है। सिद्ध में प्रचुर शक्ति होती है । समस्या उस लोक में होती है जहां शक्ति नहीं होती, जहां चैतन्य नहीं होता, जहां आनन्द नहीं होता। शक्ति, चैतन्य और आनन्द-शून्य जीवन जीना सचमुच दुर्भाग्य का जीवन जीना है । मुक्त आत्मा का जीवन शक्ति का जीवन होता है, चैतन्य का जीवन होता है और आनन्द का जीवन होता है। बाधा है आसक्ति ___ व्यक्ति केवल अपनी शारीरिक अनुभूतियों के आधार पर संशयशील बनता है। उसमें संशय होता है-निर्वाण में किस प्रकार का जीवन होगा ? इन सारी हलचलों से परे हो जाएंगे। प्रश्न हो सकता है-मरने के बाद व्यक्ति का किस प्रकार का जीवन होगा। एक व्यक्ति जीवन भर हलचल का जीवन जीता रहा, वह मर गया। अब क्या होगा? उसका उद्योग छूट गया, व्यापार छूट गया, राजनीति छूट गई, परिवार छूट गया और जो भोग का माध्यम था, वह शरीर भी छूट गया । अब क्या होगा? वह कहां चला गया? उसके लिए सारा संसार लुप्त हो गया। कुछ भी शेष नहीं बचा । मरने के बाद जो अवस्था होती है वही अवस्था मोक्ष होने के बाद होगी। पर इसमें भी बहुत अन्तर है। मरने के बाद व्यक्ति न जाने कितनी कठिनाइयों में Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy