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________________ नियमवाद नियंता की अस्वीकृति ने नियम की ओर ध्यान आकर्षित किया। जैनदर्शन नियंता को नहीं मानता, नियम को मानता है। भगवान महावीर ने चार मुख्य नियमों का प्रतिपादन किया-द्रव्यादेश, क्षेत्रोदेश, कालादेश और भावादेश । किसी भी घटना, विषय-वस्तु का ज्ञान करना हो तो कम-से-कम इन चार नियमों से उसकी समीक्षा करें और उसके बाद निर्णय लें। यह नियमवाद सत्य की खोज का सिद्धांत है। जैनदर्शन ने प्रत्येक व्यक्ति को सत्य की खोज का अधिकार दिया। केवल अमुक व्यक्ति ही सत्य का खोजी नहीं हो सकता; प्रत्येक मनुष्य हो सकता है । 'अप्पणा सच्चमेसेज्सा'- स्वयं सत्य की खोज करो। यह बहुत वैज्ञानिक बात है। नियमवाद : जैनदर्शन की मौलिक प्रस्थापना ____ सत्य की खोज का अर्थ है नियमों की खोज । नियमों की खोज ही सत्य की खोज है। वैज्ञानिक पहले नियम को खोजता है, फिर नियम की खोज के आधार पर कार्य करता है। धर्म के क्षेत्र में कहा गया—नियमों की खोज करो। जैनदर्शन ने नियमों को खोजा है और नियमों का काफी विस्तार किया है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-ये चार दृष्टियां जैनदर्शन में ही उपलब्ध हैं, अन्यत्र कहीं प्राप्त नहीं हैं। उत्तरकाल में जैनाचार्यों ने इनका विकास किया । चार आदेशों के स्थान पर पांच समवायों का विकास हुआ है-स्वभाव, काल, नियति, पुरुषार्थ, भाग्य या कर्म । ये पांच समवाय चार दृष्टियों का विकास है। इन पंच समवायों को समाहित किया जाए तो ये सारे चार दृष्टियों में समाहित हो जाते हैं। अगर विभक्त किया जाए तो ये पांच उत्तरवर्ती दृष्टियां और चार पूर्ववर्ती दृष्टियां-नौ नियम प्रस्तुत होते हैं। इन दृष्टियों के द्वारा समीक्षा करके ही किसी सच्चाई का पता लगाया जा सकता है, किसी घटना की समीक्षा या व्याख्या की जा सकती है। इनके बिना एकांगी दृष्टिकोण से वास्तविकता का पता नहीं चलता, धारणाएं पनप जाती हैं। एकान्तवाद से बचने का सिद्धान्त सम्यक्दर्शन का सिद्धांत नियमों के बिना चल नहीं सकता। तत्त्वज्ञान के विषय Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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