________________
कार्य-कारणवाद एक कपड़ा है। प्रश्न हुआ-'कपड़ा किससे बनता है?' उत्तर मिला-'रुई से बनता है।' 'रुई कहां से आई?' 'कपास के पौधे से।' 'कपास का पौधा किससे बना?
'वनस्पति के जीव और पुद्गल—दोनों का योग मिला, कपास का पौधा बन गया।'
कपड़े का कारण है रुई, रुई का कारण है कपास और कपास का कारण है जीव तथा पुद्गल का योग।
प्रश्न और आगे बढ़ा-जीव किससे बना? परमाणु किससे बना? प्रश्न रुक जाता है, थम जाता है। इसका कोई उत्तर नहीं हो सकता। जीव के बारे में कोई कारण नहीं बताया जा सकता, परमाणु के बारे में कोई कारण नहीं बताया जा सकता। कारण की खोज यहां समाप्त हो जाती है।
जीव कार्य नहीं है और उसका कोई कारण नहीं है । परमाणु कार्य नहीं है और उसका भी कोई कारण नहीं है। तर्कशास्त्र का सिद्धांत है-हर वस्तु में कार्य-कारण खोजो। यह एक स्थूल तथ्य है। व्यवहार के क्षेत्र में यह नियम लागू हो सकता है किन्तु सूक्ष्म जगत् में कार्य-कारण के सिद्धान्त का कोई अर्थ नहीं है । सूक्ष्म जगत् में न कोई किसी का कारण होता है और न कोई किसी का कार्य । जीव और परमाणु का अपना अस्तित्व होता है, उनका कोई कारण नहीं होता। यदि परमाणु का कोई कारण माना जाए तो कारण की श्रृंखला अनन्त बन जाएगी। वह कहीं थमेगी ही नहीं। तर्कशास्त्र में इसे अनवस्था दोष कहा जाता है। जीव का कारण मानने पर भी कार्य-कारण की श्रृंखला का कहीं अन्त नहीं होगा।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org