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________________ आत्मवाद के विविध पहलू । १०१ और व्यावहारिक । दार्शनिक पहलू के आधार पर कहा गया-आत्मा एक है, व्यवस्था की दृष्टि से नाना आत्माएं हैं। हमारे सामने एक आत्मा नहीं है। एक आत्मा है, यह दार्शनिक प्रकल्पना है। व्यक्ति के सामने असंख्य आत्माएं हैं। हर मनुष्य की अपनी आत्मा है, हर पशु की अपनी आत्मा है। प्रश्न हुआ—यह कैसे? इस प्रश्न को समाहित करने के लिए एक पूरे मायावाद या प्रपंचवाद की कल्पना की गई। कहा गया वास्तव में आत्मा एक है किन्तु अनेक आत्माएं जो दिखाई दे रही हैं, वह व्यक्ति की दृष्टि का आभास है, मिथ्या दृष्टिकोण है । वह वास्तविक सच्चाई नहीं है । जैनदर्शन ने इसे वास्तविक सच्चाई माना है। प्रत्येक आत्मा स्वतंत्र है और अनंत आत्माएं हैं। यह अव्यावहारिक नहीं, काल्पनिक नहीं, आभास नहीं, किन्तु वास्तविक सच्चाई है। आत्मवाद : व्यावहारिक पहलू व्यावहारिक पहलू से देखें तो एकात्मवाद से एकता फलित होती है। सब आत्माएं एक हैं—इस अद्वैतवाद में एकता की साधना फलित हुई । कहा गया सबको एक ही अनुभव करें। प्राणी को ईश्वरीय अंश मानने वाले कहते हैं हम सब एक ही पिता के पुत्र हैं । हमारा एक ही परिवार है। यह बात बहुत अच्छी है । पर व्यवहार में कोई भी व्यक्ति अपने आपको एक पिता का पुत्र नहीं मानता। सब बंटे हुए हैं इसीलिए हिंसा, अपराध, दूसरों को सताना और दूसरों के प्रति क्रूर व्यवहार करना चल रहा है। एक ही पिता के पुत्र हों तो यह सब नहीं चलता । सच्चाई यह है-एक बाप के चार बेटों में भी विरोध और विग्रह चलता है। यह दर्शन की बात जीवन में अभी तक उतरी नहीं है । जैनदर्शन के अनुसार एकत्व की बात फलित नहीं होती। 'हम सब एक है'-यह फलित नहीं होता। उसके अनुसार फलित होता है-'हम सब समान हैं'। किन्तु व्यवहार में यह भी फलित नहीं होता। जैनदर्शन को मानने वाले भी समानता के आधार पर व्यवहार नहीं करते। सब आत्माएं हैं, किन्तु व्यक्ति का व्यवहार सबके प्रति समान नहीं है। उसमें बहुत विषमता है और सारा व्यवहार विषमतापूर्ण चल रहा है। आत्मवाद : दार्शनिक पहलू व्यावहारिक पहलू पर एकात्मवाद और अनेकात्मवाद दोनों में किसी को भी बहुत सफलता मिली है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। किसी व्यक्ति ने भले ही भावना के स्वर में कह दिया-मैं तब तक मोक्ष जाना नहीं चाहता, जब तक सब मोक्ष नहीं Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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