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________________ १) जिस • दारिद्र्यनाशक अंगूठी भक्तामरकी गाथा आधारित विशेष आराधना में दारिद्रनाशक अंगूठी का कल्प भी उल्लेखनीय है मंत्र :- दारिद्रनाशक अंगूठी का कल्प तार, ताम्र सुवर्णं च इंद्र अर्क षोडशमी । पुष्यार्के घटिता मुद्रा, द्रढ दारिद्रयनाशिनी ॥ एक रती सुवर्ण, बारह रती चांदी, सोलह रती तांबा-इन सभी को एकत्रित करने से २९ (उनतीस) रती होती है । उसकी अंगूठी रविवार को पुष्य नक्षत्र का योग आये, तब बनवा लेना चाहिए । बाद में पंचामृत से प्रक्षाल करन होकर भक्तामर की प्रथम गाथा का एक सौ आठ बार जाप करना चाहिए । दाहिने हाथ की तर्जनी (सबसे बड़ी) अंगुली में श्रद्धा से धारण करना चाहिए । भोजन करते समय बायें हाथ को तर्जन में पहन लेना । भोजन के बाद पुनः दाहिने हाथ में धारण कर लेना । इस से दारिद्रय दोष दूर होता है । लक्ष्मी की वृद्धि होती है । (साराभाई नवाब संपादित महा प्रभाविक नवस्मरण पृ. ४१२) रविपुष्य में तैयार हुई इस अंगुठी को 'दृढ़ दारित्र्यनाशिनी' कही गई है यह ध्यान में लेने योग्य है । फिर नित्य १०८ वार प्रथम गाथा गिनने का और सम्बन्धित मंत्र ॐ ह्रां ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ही नमः' का भी दीखाये अनुसार एक लाख जाप पूर्ण करना चाहिए। • बुद्धि प्राप्ति कल्प दूसरा भी एक सुंदर अनुष्ठान बुद्धि प्राप्ति तथा विद्यावृद्धि के लिए है। जिस के कल्प में बताया गया है कि इस चौदवीं गाथा के काव्य का, ऋद्धि का एवं मंत्र का स्मरण करने से २) यंत्र को मस्तक पर, भुजा पर अथवा हृदय पर धारण करने से सरस्वती प्रसन्न होती है । फिर पवित्र होकर, श्वेत वस्त्र पहनकर, श्वेत जपमाला से तीनों समय १०८ बार (काव्य, ऋद्धि और मंत्र का जाप करकेदीप, धूप, घी, गुग्गल, कस्तूर, केसर, कपूर, सुखड पुष्पांजलि, अगर, शिलारस, इत्यादि की घी-मिश्रित गुटिका १०८ बनाकर नित्य होम करें। c और तीनों काल सरस्वती देवी की मूर्ति की सुगन्धी द्रव्य से पूजा करने सेमहामूर्ख भी विद्वान् बनता है । सम्पूर्ण विद्या, गुण तथा लक्ष्मी की वृद्धि प्राप्त करता है । प्रस्तुत कल्प का अनुसंधान करते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि नित्य होम करना इस का तात्पर्य सवा लाख जाप पूर्ण हो तब तक (१०८) एक सौ आठ गुटिका के होम को विधि समझे । अर्थात् प्रतिदिन १००८ जाप करके करीब सौ दिन में अनुष्ठान पूर्ण करें । बाद में जब आवश्यक्ता हो तब १०८ जाप करके कार्य करें। उसके पश्चात् यंत्र को धारण करके २७ से १०८ बार तक जाप करने से अवश्य लाभ होगा। इसके साथ बताया गया तंत्र भी बुद्धि की वृद्धि के लिए औषधिरूप है । उसका भी प्रयोग लाभ प्रद होता है । के अर्थात् “रवि-पुष्य” योग हो तब विद्या, ब्रामी, शतावरी, शंखावली, अघाडों, जावंत्री, केरसी, मालकांकणी, चित्रक, अकलगरा और शक्कर-सभी समभाग लेकर प्रातःकाल १४ वासा अदरक के रस के साथ इक्कीस दिन खाने से बद्धि की वृद्धि होती है । (अदरक के रस के बदले सौंठ का पानी भी उपयोग किया जाता है।) . श्री हरिभद्रसूरि कल्प इस कल्प के साथ आचार्य हरिभद्रसूरि कृत यंत्रो की आराधना का दूसरा विधि भी लिखा है। यहाँ इस ग्रंथ में दिये गये अलग अलग यंत्र आचार्य हरिभद्रसूरि कृत यंत्र नहीं है इसलिये हरिभद्रसूरिकृत सारे यंत्र परिशिष्ट रूप में एक साथ दिये गये है। आ. हरिभद्रसूरि के ये यंत्र १) शुभ द्रव्य से २) शुभ योग में भोज पत्र पर लिखकर ३) चांदी के तावीज में रखना XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX आराधना दर्शन आराधना-दर्शन २४७) २४७ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002588
Book TitleBhaktamara Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyashsuri
PublisherJain Dharm Fund Pedhi Bharuch
Publication Year1997
Total Pages436
LanguageSanskrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size50 MB
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