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________________ १५. १४. उपर्युक्त दोनों कल्पों का संदोहन करने पर भगवान आदिनाथ एवं माताजी चक्रेश्वरी दोनों ही की प्रतिमा आराधक को स्थापित करनी चाहिये वैसा फलित होता है । वैसा योग्य प्रतीत होता है । फिर भी वैसी अनुकूलता न हो सके तो कल्प अनुसार केवल चक्रेश्वरी माता की प्रतिमा पधराने (प्रस्थापित करने) का भी ख्याल रखें । कल्पकारों एवं भक्तामर-सम्बन्धित चमत्कार कथाओं से तो चक्रेश्वरी देवी इस स्तोत्र की महान् अधिष्ठायिका है यह बात सिद्ध होती है | अष्टगंध के रूप में इन द्रव्यों के नाम भी प्रसिद्ध हैं : चंदन, अगरू, देवदार, कोलिंजन, कुसुम, शैलज, जटामांसी, गोरोचन इन द्रव्यों से पूजा करने का एवं चक्रेश्वरी माता की अष्टप्रकारी पूजा का भी ख्याल करें । १६. चक्रेश्वरी देवी के विशेष पूजन अथवा सामग्री उल्लेख उपलब्ध नहीं हैं इसलिये सुंदर फल, नैवेद्य आदि से ही अष्टप्रकारी पूजा करें। १७. लोकपाल की भी पांच की गिनती है । सोम-यम-वरूण-वेसमण (वासव), परन्तु चार की गिनती से भी चल सके वैसा दीखता है । उनकी भी फल-नैवेद्यादिक से सुंदर पूजा करनी चाहिये । १८+१९. आम (आम्रवृक्ष की लकडी) का पाटला (पाटली) लोहे की मेख बिना का । यदि ऐसा पाटला नहीं मिले तो इस के बदले भोजपत्र में भी यंत्र लिखा जा सकता है । अष्टगंध से चाँदी के पतरे पर लिखा हुआ यंत्र बहुत अधिक समय रहने का संभव दीखता नहीं है, जिससे आम्रवृक्ष की पाटली पर यंत्र लिखवायें, परंतु आम्रवृक्ष की यह पाटली 'रवि-पुष्य नक्षत्र में ही बनवायी हुई चाहिये। २०. मूल में स्पष्ट है । २१. यंत्र को उद्देश कर फल नैवेद्य इत्यादि चढ़ाने से एवं उस की आरती उतारने से एक विशिष्ट भावना निर्मित होती है, यंत्र प्राणवान बनता है। २२. इस विधान के अनुसार आराधक को अष्टगंध से ही तिलक करना चाहिये और आज्ञाचक्र में जागृति उत्पन्न करने का प्रयत्न करना चाहिये। २३. पीली माला सुत की भी चल सकती है । फिरभी पीले केरबे की माला बहुत ही उत्तम कही जायगी | अभी नये केरबे नहीं मिलने के कारण किसीने उपयोग की हुई मालाएँ आ जाने का सम्भव होने से अत्यंत सावधान रहें, खास करके ओस्ट्रेलिया में केरबा की माला अच्छी मिलती है । वहाँ भी लोग गरमी से बचने इस माला को पहनकर अपनी रक्षा करते रहते हैं । माला न हो और ध्यान अच्छी तरह रख सकें तो अंगुलि के पौरे पर भी जाप गिन सकते हैं । इस जाप की संख्या पूरी करने के लिये प्रातः-मध्याह्न-संध्या तीनों समय का आयोजन करें । जाप के दौरान मौन ही रहें तो अच्छा । और जाप के समय बिना भी ध्यान में रहा करें । यदि यह भी सम्भव नहीं हों तो मंत्र और आराधना के, भक्तामर की महिमा बतानेवाले एवं आदीश्वर भगवान तथा चक्रेश्वरी के महात्म्य दीखानेवाले स्तोत्र-स्तवन पुस्तकों के ही पठन या मनन में रहें । आराधना करने वाले में भावों का प्रवाह सतत बहता ही रहना चाहिये । यदि यह सब सम्भव हो तो ऐसी आराधना विधि अवश्य सफल होगी। २४+२५+२६. पढ़ने से स्पष्ट हो जाते है । विवेचन की आवशक्यता नहीं है। २७ फल श्रुति है। २८ २८ वा मुदद्दा जाप संख्या पर आधारित होने से दैनिक जाप कितना करना वह अलग-अलग विधि से समझना पर १०८ जाप तो अवश्य करना आगे भी वही दिखाया है। श्री साराभाई नवाब वाले 'नवस्मरण' के ग्रंथ में ४४ और ४ मिलकर ४८ श्लोकों की पंचांग विधि प्रस्तुत की गई है । पंचांग विधि अर्थात् भक्तामर के प्रत्यक्ष श्लोक सम्बन्धित १) ऋद्धि २) श्लोक सम्बन्धित मंत्र ३) यंत्र ४) उसी मंत्र द्वारा इष्ट की सिद्ध करने की विधि और ५) तंत्र-उस गाथा के सन्दर्भ को लक्ष्य कर बनाया गया है वह तंत्र । पूर्वाचार्यों ने गाथाओं के साथ उन उन यंत्रों को किस प्रकार जोड़े यह आज भी संशोधन का ही विषय है । जिज्ञासुओं के लिये तो यह सारा ही साहित्य संशोधन साहित्य और प्रयोग-साहित्य है । तंत्र की कुछ विधियाँ शास्त्र के रूप में बतायी गई होने पर भी वे कभी भी करने योग्य नहीं है । (२४६ २४६ आराधना-दर्शन XXXXXXXXXXXXXXXXX आराधना-दर्शन Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002588
Book TitleBhaktamara Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyashsuri
PublisherJain Dharm Fund Pedhi Bharuch
Publication Year1997
Total Pages436
LanguageSanskrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size50 MB
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