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________________ • प्रत्येक नक्षत्र में मंत्रारम्भ का फल उपरोक्त के अतिरिक्त के अन्य ग्रंथों में इसी प्रकार प्रत्येक नक्षत्र में मंत्रारम्भ का क्या क्या फल बताया गया है यही भी जिज्ञासुओं को जान लेना चाहिये :१. तरंग अर्थात् अश्विनी में : सुख, धनाश्रय ।। भरणी में : शीघ्रमृत्यु, धनहानि । कृतिका में : रोग, शोक । रोहिणी में : चंद्र जैसा उज्जवल भाग्य । मृगशीर्ष में : लाभ, अपने परिवार सहित राज्यमान्यता । आर्द्रा में राज्यपीडा, अर्थहानि । ७. पुनर्वसु में : प्रजा की वृद्धि हो, कार्य चिरकाल टिके । पुष्य में : सुख भोगनेवाला और स्त्रियों को प्रिय बने । आश्लेषा : विनाश । १०. मघा में : अत्यंत भाग्यवान, सदा धनी और सुखी हो । ११. पूर्वा फाल्गुनी विद्या का पारगामी बने । १२. उत्तरा फाल्गुनी : दातार बने, (वेद) विद्या से युक्त बने । १३. हस्त में : विद्या, लाभ और बुद्धि । १४. चित्रा में : सुंदर ज्ञान प्राप्ति, लोकप्रियता प्राप्त हो, विद्वान बने । १५. स्वाति में : मृत्यु के वश हो तथा, बलहानि हो । १६. विशाखा में : क्षय प्राप्त करे, वध हो, बंधन हो । १७. अनुराधा में : सूर्यसमान तेजस्वी बने, शुभ हो. प्रिय हो । १८. ज्येष्ठ में : ज्येष्ठ की हानि तथा धनहानि हो। १९. मूल में : महाबुद्धिवान, प्राज्ञ और प्रचुर संततिवाला बने । २०. पूर्वाषाढा : विद्या का पारगामी बने । २१. उत्तराषाढ़ा : दातार बने, (वेद) विद्या से युक्त बने । २२. श्रवण में : हीनतायुक्त बने, धननाश हो । २३. धनिष्ठा में धनाढ्य बने, युवति प्रिय बने, विद्वान बने । २४. शतभिषा : सत्यवादी बने, धनधान्य से प्रचुर रहे । २५. पूर्वा भाद्रपदा : विद्या का पारगामी बने। २६. उत्तरा भाद्रपदा : दातार बने, (वेद) विद्या से युक्त बने । २७. रेवती में : दीर्घायु तथा धनधान्य युक्त बने । इस प्रकार नक्षत्रों के फल का भी विज्ञजन विचार करें। इसी तरह लग्न के फल का भी यहाँ संकेत करने में आया है : • मंत्रारम्भ का लग्न अनुसार फल १. मेष : दुःख तथा पीड़ा २. वृषभ : रोग ३. मिथुन दीनता कर्क दीनता कविकुल में प्रसिद्धि ६. कन्या सफलता तुला सुखोपभोग ५८. वृश्चिक नाश ९. धन धनाढ्य पन १०. मकर श्रेय प्राप्ति ११ कुंभ : निर्धनता १२. मीन षट्कर्म में अभिरक्तता (सफलता) तथा धनी और वक्ता बने सिंह (२४२ २४२ आराधना-दर्शन XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002588
Book TitleBhaktamara Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyashsuri
PublisherJain Dharm Fund Pedhi Bharuch
Publication Year1997
Total Pages436
LanguageSanskrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size50 MB
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