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इन सारे ही विषयों का ध्यान रखना यह अत्यंत ही अनुभव और पश्रिम की अपेक्षा रखता है अतः सामान्य गृहस्थ को तो गुरूवाक्य से ही आगे बढ़ना है।
• आराधना की सूचना रूप २८ मुद्दे आचार्य प्रवर हरिभद्रसरिजी ने भक्तामर की विशेष आराधना हेतु शुभयोगों का निदर्शन किया है । साथ में निम्नानुसार सूचन किये हैं :
१. आदिनाथ भगवान का जिनबिम्ब सामने रखें । २. यह जिनबिम्ब सप्तधातु, चांदी, सुवर्ण का अथवा अन्य किसी उत्तम प्रकार के द्रव्य का होना चाहिये । ३. इस प्रतिमा को अष्टप्रकारी पूजा करके स्थापित करें।
आराधक अपना देह पवित्र करके चंदन का विलेपन करें । पवित्र वस्त्र पहनें। एकासन करें।
ब्रह्मचर्य का पालन करें। ८. सदैव स्मरण करें। आगे मार्गदर्शन करते हुए वे बताते हैं कि... इसी विधि से ऋद्धि-मंत्र-सहित सवालाख स्मरण करें, जिस से सिद्धि प्राप्ति होती है ।
इस के उपरान्त इसी टीका के आगे के भाग में भक्तामर की गाथा १ से २२ तक का विधि निम्नानुसार दर्शाया जाता है, जो यहाँ शब्दशः प्रस्तुत किया जाता है :
१. आराधना का स्थान एकांत युक्त अपनायें । २. आराधना स्थान को भूमि पर नहीं पड़े हुए गाय के गोबर से कुमकुम मिलाकर पोते । ३. देहशुद्धि करें। ४. पीले वस्त्र पहने ।
उत्तर दिशा में सिंहासन पर चक्रेश्वरी की मूर्ति की स्थापना करें। पंचामृत से भरा हुआ कुम्भ स्थापित करें । कुम्भ पर श्रीफल रखें। चार लोकपाल की स्थापना करें।
घी का दीपक प्रज्जवलित करें। ९. नवरंगी अथवा दशांग धूप प्रगटाये । १०. अक्षत का स्वस्तिक करें। ११. स्वस्तिक पर सुपारी रखें। १२. पंचामृत के कुम्भ में रजत-द्रव्य (चांदी के सिक्के) छोड़े-अंदर डालें । १३. पंचवर्ण के १०८ पुष्पों की माला बनाकर कुम्भ के कंठाग्र भाग में पहनायें । १४. पंचामृत से चक्रेश्वरी का प्रक्षाल करें। १५. अष्टगंध से चक्रेश्वरी की पूजा करें । १६. बाद में चक्रेश्वरी की अष्टप्रकारी पूजा करें। १७. लोकपाल को बलि-बाकळा, फल-नैवेद्य-पुष्प चढ़ायें ।
रवि-पुष्य में तैयार किया हुआ आम्रवृक्ष के लकड़े का पाटला अथवा चांदी का पतरा तैयार रखें। १९. इस पाटले अथवा रजत-पट पर यंत्र का आलेखन करें । २०. यंत्र की भी फल-नैवेद्य से पूजा करें ।
यंत्र की आरती करें। २२. आराधक अष्टगंध से भाल पर तिलक करें । २३. उत्तरदिशा में मुख रखें। पीले आसन पर बैठें।
पीली माला से सर्वप्रथम काव्य के १२००० जाप करें।
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX आराधना-दर्शन
आराधना-दर्शन
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