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________________ ११ एकासन, २२, एकासन और ४४ एकासन करके भी भक्तामर का तप पूर्ण किया जा सकता है । क्योंकि आगे हम जिस सवालाख भक्तामर के जाप की बात कर गये है । वैसी ही एक बात नवस्मरण के साराभाई नवाववाले मुद्रित ग्रंथ में उल्लिखत है । वहाँ भी आराधना के दौरान नित्य एकासन करने का बताया गया है । इस प्रकार जिसे भी विशेष आराधना के रूप में भक्तामर गिनना हो उसे एकासन तो करना ही चाहिए । साधना के दौरान एक ही बार सात्त्विक और परिमित आहार का ग्रहण और ब्रह्मचर्य पालन का सूचन सर्वत्र किया जाता है, इस लिये विशेष आराधनाओं के दरम्यान तो एक बार ही भोजन का एकासन का ख्याल रखना ही चाहिए। 'युक्ताहार-विहारस्य, युक्त कर्मसु सर्वदा । युक्त स्वापावबोधस्य, योगो भवति दुःखहा ॥' (श्री भगवद्गीता) आराधना के दौरान सोना, बैठना, आहार-निहार सब कुछ ही परिमित हो तब ही आराधना ठीक से जमती है । श्री भक्तामर नित्य आराधना पट श्री महाप्रभाविक लघु भक्तामर पूजन पः भानारामकमिथि: पामाथि वापस मुल्लाहोरलादेपकारी व समाजहिरादि नाफोन मिलिलिपुलेकमभूत निःशोधनिर्वितमगतसिपोपमानम्। sauneeta BIRBHANGEslidesi IPouE बुनम ॥ ॥ जिनपाद युगम्॥ II JINPAD YUGAM II शापिपणासरगम्य अजिततील Hasab JMDEHRREpht सुनिधाविडिय श्री भक्तामर मंदिर मूळनायक आदीश्वर भगवानकी चरण पादुका भरूच "श्री भक्तामर स्तोत्र नित्य आराधना मंत्र" VA ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं सिद्धाणं सूरिणं उवज्झायाणं | साहूणं मम ऋद्धिं वृद्धिं समीहितं कुरू कुरू स्वाहा ॥ रोज १०८ बार गीने MAHASMDURA XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX आराधना दर्शन आराधना-दर्शन २३९ JainEducation International 2010-04 For Rrivate Personal Use Only viww.jainelibrary.org
SR No.002588
Book TitleBhaktamara Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyashsuri
PublisherJain Dharm Fund Pedhi Bharuch
Publication Year1997
Total Pages436
LanguageSanskrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size50 MB
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