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(११) मंत्र साधना के द्वारा भविष्य का ज्ञान और निकट भविष्य में होने वाले उपद्रव या अनिष्ट का निवारण....
(१२) कई ऐसे प्रसंगों मे मंत्र साधना के द्वारा प्रतिष्ठा आदि महान कार्य में विशाल जनसमूह को अन्न-पानी की कमी न हो, ऐसा प्रयोग...
(१३) जिन श्रावकों ने महान जिन शासन की प्रभावना की है, अथवा जो श्रावक महान जिन शासन की प्रभावना करने में सक्षम है, ऐसे श्रावकों की मंत्र साधना के द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से सहायता...
(१४) मंत्र साधना के द्वारा वासित वासक्षेप से अपने अनुयायीयों को मोक्ष प्राप्ति सापेक्ष प्रत्येक कार्य की सफलता के लिए आशीष...
(१५) जिनालयों-तीयों एवं शासन के नूतन स्थानों का नव-निर्माण या जिर्णोद्वार आदि महान कार्य कारणवश रुक गये हों तब दुष्ट देवों के उपसगों को मंत्र साधना के माध्यम से दूर कर निर्विघ्न पूर्णाहुती....
(१६) मंत्र साधना के द्वारा अपने आयुष्य के बारे में जान कर समाधि के लिए तैयारी...
(१७) अन्य धर्म एवं धर्मांध व्यक्तियों द्वारा धर्म पर आक्रमण हो तो मंत्र एवं मंत्र साधना द्वारा धर्म का संरक्षण.... ऐसे कितने ही कार्य मंत्र शक्ति से हुए हैं और हो रहे हैं ।
क्या हमें ऐसा लगता कि विज्ञान के ऐसे विकासशील काल में भी जो वैज्ञानिक पद्धति से सिद्ध नहीं हो सकते है ऐसे मंत्र-यंत्र का कोई उपयोग करेगा ?
विज्ञान का विकास वर्तमान में बहुत ही तीव्र गति से हो रहा है, यह बात स्वीकार्य है । लोगों का बौद्धिक स्तर भी दिन ब दिन ऊँचा होता जा रहा है, यह बात भी स्वीकारने योग्य है... परन्तु साथ ही साथ लोगों की श्रद्धा ऐसे मंत्र-तंत्र-यंत्र मे भी प्रबलता से बढ़ रही है... यह एक सत्य हकीकत है, जिसे नकारा नहीं जा सकता ।
सधे धर्म के नाम पर और सधे चमत्कारों की आड़ में धूर्तता एवं लोगों को गुमराह करने के किस्से भी देखने में आते हैं, ठीक उसी तरह विज्ञान के नाम पर भी कई अवैज्ञानिक प्रचार भी हो रहे हैं । इसी लिए सच्चे वैज्ञानिक का अभिगम क्या है उसे समझने की जरूरत है। जैसे विज्ञान कोई भी बात को प्रमाण के बगैर मानने को तैयार नहीं है, ठीक उसी प्रकार जिस बात का विज्ञान को प्रमाण नहीं मिलता उस बात को मानने से विज्ञान इन्कार भी नहीं कर सकता ।
विज्ञान का कहना हैं कि जीव के स्वतंत्र अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं मिलता... परन्तु विज्ञान ने कभी यह नहीं कहा कि जीव के स्वतंत्र के प्रमाणों के अभाव में "जीव" ही नहीं है। वैसे विशुद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा विशुद्ध धार्मिक दृष्टिकोण का आगे चल कर समन्वय होने की पूर्ण सम्भावना है।
अब बात बाकी रही मंत्र-तंत्र एवं यंत्र की, और आज के युग में उसकी उपयोगिता की । तो इस संदर्भ में ऐसा लगता हैं कि इस वैज्ञानिक युग में अभी भी हर जीव को अपना जीवन बहुत प्यारा है। कोई भी व्यक्ति स्वयं को मात्र रासायनिक प्रक्रिया है, ऐसा मान कर अपनी जीवन लीला को समाप्त नहीं करता । आस्तिक भी जीवन जीना चाहता है और साथ ही साथ नास्तिक को भी अपना जीवन प्यारा है। जीवन का अर्थ सुख की सतत शोध एवं दुःख से दूर-दूर जाने की प्रक्रिया है।
किसी को भी जीव के स्वतंत्र रूप के अस्तित्व में भले ही श्रद्धा नहीं रही हो, परन्तु उसको भी जीवन के अस्तित्व में तो श्रद्धा हैं ही। मंत्र जीवन को सफल रुप से सांत्वना देने वाला महान तंत्र है । किसी नास्तिक व्यक्ति को उसकी नास्तिकता की भाषा में ही पूछो कि अगर तुम्हारे स्वजन कोई मुसीबत में फंस जाये तो तुम क्या करोगे ? भले ही कैसा भी पाषाण हृदय वाला मानव क्यों न हो, उसे जिस व्यक्ति से प्रेम होगा, उसका स्वास्थ्य ठीक रहे... इसे किसी प्रकार का दुःख न हो,... उसका जीवन आबाद रहे.... ऐसी ही प्रार्थना... ऐसे ही करुणामय शब्द उसके मुख से निकलेगें । इस बात से स्पष्टतया यह साबित होता है कि इस काल में भी लोगों को मंत्र की नितांत आवश्यकता है... कदापि के काल से भी ज्यादा.. कारण आज के युग में अनिश्चितता बहुत बढ़ गई है। शहर में रहने वाले मनुष्य सुबह घर से निकल कर शाम को घर पहुँचने के दरम्यान अकस्मात कुछ अनहोनी न घटित हो जाये,
रहस्य-दर्शन
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