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________________ 000000000000000000 || ॐ पार्श्वनाथाय ह्रीं ।। ।। जैन जयति शासनम् ।। ।। ॐ पद्मावत्यै ह्रीं ।। संपादकीय श्री भक्तामर स्तोत्र में हम प्रार्थना-स्वाध्याय एवं ध्यान तीनों को एक साथ में प्राप्त कर सकते हैं । इस स्तोत्र में प्रेय प्राप्ति एवं श्रेय प्राप्ति की प्रार्थना एक साथ में ही है । प्रेयार्थी एवं श्रेयार्थी दोनों को परमानंद देनेवाला यह स्तोत्र है। इस स्तोत्रने अपनी अद्वितीय प्रभा फैलायी है । जैन जीवन में भक्तामर व्याप्त हो गया है । कितना सुहाना है “स्वाध्याय" शब्द । साधु जीवन क्या है ? स्वाध्याय जीवन एवं ध्यान जीवन । जैन शास्त्र परंपरा स्वाध्याय को व्यापक मानती है। स्वाध्याय होते ही ध्यान अपने आप में ही हो जाता है । जैन परंपरा का कथितव्य है कि ध्यान करने की नहीं... होने की प्रक्रिया है। स्वाध्याय होने की नहीं, करने की प्रक्रिया है। प्रस्तुत पुस्तक में भक्तामर के अर्थ तीन भाषा में दिये गये है । प्रत्येक अर्थों के पीछे एक द्दष्टि है, जिसे पाठक वर्ग स्वयं ही समझने की कोशिश करेंगे । हमें विश्वास है कि भाषांतर शैली पाठकवर्ग को पसंद भी आयेंगी और अनुकरणीय भी लगेंगी । अंग्रेजी एवं गुजराती की तरह यदि भावार्थ का हिंदी में विवेचन होता तो बहुत अच्छा ही होता । परंतु पूज्य गुरूदेव ने किये हुओ अर्थो को प्राधान्य देने की भावना से पू. गुरूदेव के किये हुओ अर्थो को देना ही उचित माना है । -0000000000000000000000000000 श्री भक्तामर की संपादन यात्रा के बारे में बहुत कुछ हमने गुजराती संपादकीय में लिखा है । यहाँ उसकी पुनरावृत्ति करना हमें ठीक नहीं लग रहा है । यहाँ तो हमने लिखे हुओ “आराधना-दर्शन" एवं "रहस्य दर्शन" के विषय में ही हम कुछ लिखेंगे । -Geeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeo भक्तामर स्तोत्र का रहस्य जानने योग्य है एवं रहस्यों को जानकर उसकी आराधना करने योग्य है । अतः यहाँ दो विभाग दर्शित किये है । कुछ लोगों के दिल में शंका होती है कि क्यों भक्तामर स्तोत्र को इतनी भौतिक साधना का साधन बनाया गया ? कुछ लोगों के दिल-दिमाग में चमत्कारों की बात जमती ही नहीं है । कुछ लोग मानते हैं कि धर्म में भौतिक फलों को देने की क्षमता नहीं है । धर्म तो मात्र आत्मा को मुक्ति दिलाने का ही साधन है । कई व्यक्तियों का मानना है कि धर्म में "प्रेय एवं श्रेय" दोनों को देने की क्षमता है, पर धर्म का उपयोग श्रेय मार्ग के रूप में ही करना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि प्रेय की प्राप्ति धर्म से नहीं होगी तो क्या अधर्म से होगी? अतः प्रेय साधना भी धर्म से ही होनी चाहिए । ऐसे विविध अभिप्रायों के बीच हमें क्या तय करना चाहिए यह सोचना जरूरी है तथा मंत्रो की आज इस वैज्ञानिक युग में क्या महत्ता है ? मंत्र किस तरह से कार्य करते हैं ? यह सारी बातें रहस्यदर्शन में बतायी गई है । आराधना दर्शन में किस तरह से हम आराधना कर पाते हैं, यह भी दर्शित किया गया है । शास्त्रों में सातीशायी अर्थात् चमत्कारिक तीर्थो की यात्रा का विशेष विधान है । वहाँ भी यही दृष्टि है कि चमत्कार के द्वारा सामान्य आराधक की प्रज्ञा वीतराग धर्म के प्रति प्रभावित हो और साधक क्रमशः निजानंद के आस्वाद प्रति आकृष्ट हो । श्री भक्तामर स्तोत्र की आराधना भी आपको मोक्षमार्ग प्रति-वीतराग प्रति-जैन धर्म प्रति दृढ आस्था पैदा करायेंगी । हमने खुदने भी भक्तामर के कितने कल्प के अनुसार आराधना पूज्य गुरुदेव की मंगल निश्रा में उनके ही आशीर्वाद से की है । उस आराधनाओं से कल्पनातीत फल आये हैं । जो महानुभाव जैन कुल में जन्म लेकर भी ओर तंत्रो के पीछे या विपश्यना जैसी साधना को ही सर्वस्व मानने लगे थे, वे भी भक्तामर स्तोत्र के चमत्कारों से जैन धर्म के प्रति पुनः श्रद्धालु बन गये । 1600000000000000000-9 Jan Education inimational 2010_04 ) } Forgoivate & Personal use only 5 3 6 flow jaineligiary, org Jail Education Interational 2040_04 For Private & Personal Use Only
SR No.002588
Book TitleBhaktamara Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyashsuri
PublisherJain Dharm Fund Pedhi Bharuch
Publication Year1997
Total Pages436
LanguageSanskrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size50 MB
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