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________________ Geeeeeee00000000000 ।। ॐ पार्श्वनाथाय हीं ।। ।। जैनं जयति शासनम् ।। ।। ॐ पद्मावत्यै ह्रीं ।। प्रकाशकीय -Geeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeed श्री भक्तामर दर्शन ग्रंथ आपके कर-कमलों में समर्पित करके मुझे परम प्रसन्नता होती है । भक्तामर स्तोत्र मंदिर के विश्व के प्रथम निर्माण से श्री भरूच जैन संघ एवं जैन धर्म फंड पेढी धन्य हुी है । मुझे भी इस तीर्थ निर्माण में सेवा का लाभ प्राप्त हुआ । साथ-साथ हमें लब्धि-विक्रम की समुज्जवल आशिष मिली। पूज्य गुरुदेव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. की कृपा नज़र बनी रही है और हमें पुनः इस “भक्तामर दर्शन" ग्रंथ के प्रकाशक के रूप में सेवा का अवसर मिला। पूज्यों की ग्रंथ आलेखन की महान साधना... दान प्रेरक पूज्यों की प्रेरणा... मुद्रणकार श्री जयेश की अनन्य एवं असाधारण लगन... परामर्श दाताओं के एवं चित्रकार के बारे में मैं ने गुजराती प्रकाशकीय में बताया है । पुनः एक बार उन महानुभावों को विनम्र वंदना करता हूँ एवं अन्य साथीओं की कृतज्ञभाव से अनुमोदना करता हूँ। श्री भरूच तीर्थ एवं तीर्थ के ऐतिहासिक प्रसंग एवं पू. गुरूदेव विक्रमसूरीश्वरजी म.सा. के अनूठे एक स्मृति-ग्रंथ की आवश्यकता है । पू. गुरूदेव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से कुछ आलेखन भी मैं ने किया है । श्री बनारस तीर्थ के जिर्णोद्धार एवं श्री पार्श्व-पद्मावती प्रेरणा तीर्थ की प्रतिष्ठा के बाद पूज्यश्री अवकाश मिला पायेंगे और हमारी मनोकामना जरूर पूर्ण करेंगे । प्रस्तुत प्रकाशन निःसंशय जिन शासन की गरिमा का एक सुनहरा अध्याय है । पूज्य गुरुदेव की भक्तामर को विश्व-प्रसिद्ध बनाने की तमन्ना जरूर सफल होगी। जहाँ जहाँ भी भक्तामर का "भ" कार गुंजित होगा, वहाँ वहाँ भरूच के “भ' का भी भव्यता से जयनाद होगा । भरूच का महा तीर्थ हमारी महाय॑ बिरासत है । सुश्रावक श्रीयुत् अनोपचंद भाई संरक्षित इस तीर्थ का हमारे साथी ट्रस्टीगण के साथ मैं ने सेवा करने का प्रयास किया है । साथ-साथ पूज्यों की कृपा से कावी-झघडीया-जंबुसर जैसे तीर्थो और मंदिरों की सेवा का भाग्य मिला है । बस, मेरा तन-मन-जीवन इस तरह से शासन को-लब्धि विक्रम राजयश समुदाय को समर्पित बना रहें यही कामना... चाहना । ___मेरे से एवं मेरे साथीओं से कोई भी त्रुटि रह गई हो तो हम क्षमाप्रार्थी है । आशा है अधिक नहीं तो, हमारे बीसवें मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी के क्रमानुसार बीसहजार प्रतियों तो इस ग्रंथ की अवश्य निकलेंगी। आप जब भी चाहे, पत्राचार द्वारा या प्रत्यक्ष में हमारी भेट करें । हमें ग्रंथ के बारे में एवं तीर्थ के निर्माण के विषय में... तीर्थ के विकास के बारे में मार्गदर्शन प्रदान करें । हमें सेवा का मौका दें । बस, अंततः पूज्य गुरुदेव के प्रिय आशिष “आत्मा से परमात्मा बनें" हमारे लिए भी सार्थक बनें । डॉ. सुरेश महेता भरूच दि.७-६-९७ I bettersectetectete test test teeeeeeeeeee BR 800000000000000000-3 a nslucation International 2010_04 For Prwate & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.002588
Book TitleBhaktamara Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyashsuri
PublisherJain Dharm Fund Pedhi Bharuch
Publication Year1997
Total Pages436
LanguageSanskrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size50 MB
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