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भक्त का जीवन भक्ति से अजर बनता है... अमर बनता है... अरूज बनता है और आनंदमय बनता है। अजरता-अमरता-अरूजता और आनंदमयता
शास्त्रों के रहस्यों को पाये बिना शक्य नहीं है।
भक्तामर में तो जाने हुए फिर भी अनजाने
अनजाने फिर भी जानने योग्य ऐसे अनेक रहस्य है।
इसलिए अपार का आभास देता हुआ
"रहस्य दर्शन" आपको सिंधु के एक बिंदु का दर्शन करायेगा।
वंदना...
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पूज्य गुरुदेव विक्रमसूरीश्वरजी म.सा. के अनंत उपकार की स्मृति में एवं पूज्य मातृश्री रुक्मिणीदेवी मिश्रीमलजी कोठारी की अनेक तपश्चर्या की अनुमोदनार्थे । सुपुत्र : मनोरथमल, जयन्तीलाल, सज्जनराज पुत्रवधु : सौ. वसंतादेवी, सौ. वसंतादेवी, सौ. संतोषदेवी पुत्री : विमलादेवी, भाग्यवंतीदेवी पौत्र : ललीत, धीरज, दीपक, दिलीप पौत्री : रेखा, हर्षा, वर्षा, अंजना मनोरथटेक्सटाईल्स, बेंगलोर (बांता-राजस्थान).8 २२६६७२८/२२०५२२०
मनोरथमल कोठारी
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