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षष्ठं परिशिष्टम्
अज्ञानिकवाद = नारायण, कण्व, माध्यंदिन, मोद, पिप्पलाद, बादरायण, विष्टकृत् , ऐतिकायन, वसु, जैमिनि आदि सडसठ
वादियोंना वादने अज्ञान वाद कहेवामां आवे छे, नयचक्रमां प्रथम अरना अन्तमा मल्लवादिसूरिए आ जैमिनि
मतर्नु उत्थान करीने बीजा अरमां निराकरण कयं छे. भारतरामायण = व्यासरचित भारत के अने रामायण वाल्मीकि ऋषिनी कति छे. वेद = हिन्दुओना आचारविचार, रहन-सहन, धर्म-कर्मने सारी रीते बतावनार ऋषिओं द्वारा अनुभूत अध्यात्मशास्त्रना
तत्त्वोंनी राशिनो बोध आपनार ग्रन्थ. मीमांसक = जैमिनि दर्शनने माननारा कर्मकाण्डी दार्शनिक. योनिप्रामृत = जीवोनी उत्पत्तिना प्रकार विगेरे नो दर्शावनार पूर्वधरोनी अपूर्व महान् कृति छे. निरुक्त = वेदमा आवेला कठिन शब्दोंनो समुच्चयरूप निघण्टु जेना कर्ता प्रजापति काश्यप छे तेनी व्याख्याने निरुक्त कहेवामा
आवे छे । निरुक्त चतुर्दश छे एम दुर्गाचार्य कहे छे, हालमां यास्क रचित निरुक्त ज उपलब्ध छे.. वैद्यक = आयुर्वेदनो ग्रन्थ छे जेम चरक, सुश्रुत वगेरे. महाकालमत = निश्चयरूपथी आ मत विदित नथी किन्तु एक कालचक्र सिद्धान्त छे आ मतनुं मन्तव्य आ छे के बाह्य जगत्ना
सम्पूर्ण प्रपंच जेम सूर्य, चंद्र, आकाश, पाताल, भूमि, विंध्यहिमालयादि पर्वत, गंगा-यमुना-सरस्वती आदि नदिओ अने जे कोई स्थूल-सूक्ष्म वस्तु छे ते बधी मानवशरीरनी अन्दर छे आ रहस्यने जाणीने शरीरनी शुद्धि माटे प्रयत्न करवो जोइए केम के शरीरद्वारा सिद्धि थाय छे कायशुद्धिथी प्राण अने चित्तनी शुद्धि थाय छे. आ त्रणनी विशुद्धिथी परमार्थनी प्राप्ति थाय छे. जेम जीवनी जाग्रत् स्वप्न सुषुप्ति अने तुरीयावस्थात्मक जगत् छे तेम निर्माण संभोग धर्म सहजकायात्मक जीव छे विशुद्धजीव ने काल कहे छे. एवो एक मत छे ते, समष्टि-व्यष्टि रूपथी परमतत्त्वचें प्रदर्शन आ महाकालमतमां करवामां आवे छे. आ मत पण प्राचीन छे. माटे आज मत
प्रायः अहीं विवक्षित होय ! | वैनाशिक = आथी शायद क्षणिकवादनो निर्देश होय. भाष्य = अन्यदार्शनिकोर्नु भाष्य तथा नयचक्रर्नु भाष्य जाणवू. केम के नयचक्र अने टीकाना पर्यालोचनथी नयचक सूत्रभाष्यात्मक
छे. एम मालूम पडे छे. वार्षगणतंत्र = वार्षगण्य वडे निर्मित षष्टितंत्र नामनो सांख्यमतनो ग्रन्थ. वैशेषिक = कणाद महर्षि ना मतने अनुसरनारा. बौद्ध = बुद्धना उपदेशने माननारा. सांख्य = कपिलमहर्षिना सिद्धान्त-प्रकृतिपुरुषतत्त्ववादी. वसुरात = भर्तृहरिना गुरु छे. वसुबन्धुना कोशभाष्य ऊपर व्याकरण दोषोंना प्रकाश करनार. भर्तृहरि = वैयाकरण, वाक्यपदीयना कर्त्ता शब्दब्रह्मवादी छे. संसर्गवादी = द्रव्यगुण क्रिया वगेरेनो भेद मानीने संयोग समवाय आदि सम्बन्धथी द्रव्यादिनो सम्बन्ध माननार वैशेषिक वगेरे. वैयाकरण = पाणिनि आदि शब्दप्रधानवादी. लक्षणकार = आ कोण छे ते बराबर ज्ञात नथी. लक्षणथी ज प्रमाणनी सिद्धि थाय छे तेथी वस्तुनी सिद्धि थाय छे एम
माननारो कोई वादी हो! पाषण्डिनः = शास्त्रनी उपेक्षा करीने पोतानी बुद्धिना बलथी ज वस्तुतत्त्वनी व्यवस्था करनारो. अहद्बद्धकपिलकणादब्रह्मादिप्रोक्तैरागमैः = जैन, बौद्ध, सांख्य, वैशेषिक, वेदान्त आदि शास्त्रो. नयचक्रशास्त्रं = नयोना समुदायनो विचार करनार शास्त्र. जैमिनीयोपनिषदादीनि = पूर्वोत्तरमीमांसा आदि. सप्तनयशतारचक्राध्ययन = सातसो नयोर्नु वर्णन करनार सुप्राचीन शास्त्र. द्वादशारनयचक्र = बार नयोनुं वर्णन करनार प्रस्तुत प्रन्थ. संमतिनयावतारादि = आ सिद्धिसेनदिवाकर सूरीश्वररचित संमतितर्कनयावतार आदि ग्रन्थ.
- परिशिष्टानि समाप्तानि -
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