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________________ द्वादशारनयचके षष्ठं परिशिष्टम्. न्यायागमानुसारिणीसमेतनयचक्रनिर्दिष्टग्रन्थग्रन्थकृत्परिचयः जैन = अष्टादशदोषथी रहित सर्वज्ञ-तीर्थकरोनी आज्ञाना आराधक. आहेत = अष्टप्रातिहार्य युक्त, त्रणलोकनी पूजाने लायक, मोक्षाराधक जीवोना उपास्य देव अर्हन् कहेवाय छे तेमना सम्बन्धी. वादपरमेश्वर = जगतना बीजा तमाम वादोना ऊपर प्रभुत्वने धारण करनार स्याद्वाद-अनेकान्तवाद छे. कपिल = आ सांख्यशास्त्रप्रवत्तक सुप्राचीन कालना महर्षि छे. - काणभुज = आ महर्षि कणाद मतानुयायी वैशेषिक छे. कणाद = आ महर्षि वैशेषिक मतना प्रवर्तक छे एने उलूक पण कहेवामां आवे छे अक्षपादः = आ महर्षि न्यायशास्त्रना प्रवर्तक छे एने गौतम पण कहेवामां आवे छे. व्यास = पुराणों तथा महाभारत अने ब्रह्मसूत्रना को मनाय छे. शौद्धोदनि = शुद्धोदननो पुत्र सिद्धार्थ एटले बुद्धदेव छे जेणे बौद्धमतनी स्थापना करी. मस्करि = आ बुद्धसमकालीन आजीवक सम्प्रदायनो माननीय उपदेष्टा छे आ परिव्राजक न हतो. अकर्मण्यतावादी गोसाल - अपरनामधारी मगध ना निवासी हता. एनो विशेष परिचय बौद्ध अने जैन ग्रंथोंमां वर्णित छे.. पतञ्जलि = पाणिनिव्याकरणसूत्रो ऊपर महाभाष्य नामनी टीकाना कर्ता छे योगसूत्रोना पण कर्ता मनाय छे. तंत्रार्थसङ्ग्रहादि = आ ग्रन्थ अनुपलब्ध अने अश्रुत पण छे तेना नाममां पण शङ्का छे तत्र अर्थसङ्ग्रह अथवा तत्त्वार्थसङ्ग्रह __ या तंत्रार्थसंग्रह छे एनो निश्चय नथी. सङ्ग्रहान्तरः = आ सङ्ग्रह कौण सङ्ग्रह तेना कर्ता क्रोन आ अज्ञात छे. सूत्र = अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद्विश्वतोमुखम् । अस्तोभमनवद्यञ्च सूत्रं सूत्रविदो विदुः ॥ पोताना सिद्धांतोने संक्षेपथी बतावनार वचनने सूत्र कहेवामां आवे छे. वाक्यभाष्यटीकाकार = वाक्यकार एटले सूत्रों ऊपर वृत्तिना कर्ता. भाष्यकार = सूत्र अने वृत्तिनो विस्तारथी व्याख्या करनार. टीकाकार = सामान्ययणे मूलनी व्याख्या करनार. सैद्धार्थीय = आईत मतने माननाराओ. शाक्यपुत्रीय = बुद्धना मतने माननाराओ. कटन्दी = वैशेषिक सूत्रो उपरनी टीका छे, प्रशस्तमति = वैशेषिक सूत्र ऊपर टीका लखनार विद्वान छे. आचार्यसिद्धसेन = जैन मतमां सुप्रसिद्ध सम्मतितर्क वगेरे ग्रन्थोना रचयिता वैयाकरण दार्शनिक कवि आचार्य सिद्धसेन दिवाकर महाराज छे. अभिधर्मागम, अभिधर्म, बुद्धवचन अने उपदेशोना प्रतिपादन करनार ग्रन्थने पिटक कहेवामां आवे छे. ते त्रण छ, विनयअभिधर्मपिटक पिटक, सूत्रपिटक अने अभिधर्मपिटक । अभिधर्म एटले निर्वाण ना अभिमुख धर्मनुं प्रतिपादन करनार वचन. प्रकरणपद = अभिधर्मना कायस्थानीय ज्ञानप्रस्थान नो अङ्गभूत ग्रन्थ छे धर्म ज्ञान आयतन आदिनु विवरण करनारी प्रथम वसुमित्रनी रचना छे. अभिधर्मकोश = वसुबन्धुनो सर्वश्रेष्ठ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ छ जेमा अभिधर्मना समस्त तत्त्वोनी वर्णना करवामां आवी छे. अद्वैतवादी = परब्रह्म ज सत्य वस्तु छे बीजा काल्पनिक असत्य छ एम माननारा वेदान्तिओ. वसुबन्धु = अभिधर्म कोशनो की. दिन्न % वसुबन्धुना शिष्य दिङ्नागर्नु अपर नाम छे. लोकशास्त्र = एवं कोई शास्त्र जाणवामां नथी आव्यु अथबा बौद्ध वैदिकोनु शास्त्र ज लोकशास्त्र थी कहेवामां आव्यु होय ! _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002587
Book TitleDvadasharnaychakram Part 4
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorLabdhisuri
PublisherChandulal Jamnadas Shah
Publication Year1960
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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