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न्यायागमानुसारिणीसमलङ्कृते द्वादशारनयचक्रे
निर्दिष्टान्युद्धरणानि ।
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[संम. को १ गा.३१] [नंदी. सू. ४२] [जीवा. ३.१-७८] [नंदी. सू. २४ ] [सि. द्वा. ३. श्लो. ८]
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(टी०) (टी.) (टी.)
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[वै. अ. १. आ. १. सू. १५] [वै. अ १ आ. २ सू. ७] [वै. अ. १. आ. २. स. ८] [विशे. भा. १४१. १४२. १४३ ] [पा. सू. ५.२-१३५ वार्तिक] [संम. का. ३ णा. ४७]
(श्री ) (टी.) (टी.) (टी.)
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एगदवियम्मि जे अत्थपजवा. एयं दुवालसंगं गणिपिडग. इमाणं भंते रयणप्पभा पुढवी. जत्थाभिनिबोहिअनाणं क्वचिनियतिपक्षपातगुरु० स्थूलमतये न वाच्याः क्रियागुणवत्समवायिकारणं. सदिति यतो द्रव्यगुण कर्मसु सा सत्ता द्रव्यगुणकर्मभ्योऽर्थान्तरं सत्ता जं चउदसपुव्वधरा छट्ठाणगया... अर्थाच्चासन्निहिते जावइया वयणपहा. प्रत्यक्षग्रहे सिद्ध्यति द्रव्यस्यानेकात्मनो. सर्व सर्वात्मकम् देशकालाकारनिमित्तावबंधात्तु. आध्यात्मिकाः कार्यात्मकाभेदा० अन्यकियत्तदोर्निर्धारणे. एकाच्च प्राचाम् द्रव्यं च भव्ये दु छ गतौ गुणसंद्रावो द्रव्यम् क्रियावद्गुणवत्समवायिकारण. क्षि निवासगत्योः रूपरसगंधस्पर्शवती शन्दस्पर्शरूपरसगन्धात्मा पृथिवी कक्खटलक्षणा आदानीयालयो मासाः गुणपर्यायवद्रव्यम् नागृहीतविशेषणा. सामयिकः शब्दादर्थप्रत्ययः संज्ञाकर्म त्वस्मद्विशिष्टानां. अथवा नेदमेव नित्यलक्षणं क्रियागुणव्यपदेशाभावात् प्रागसत् द्रव्यत्वं गुणत्वं कर्मत्वं च
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[पा. ५-३-९१-९२] [पा. ५-३-९४] [पा. ५-३-१०४] [पा. धा. ९४४-९४५] [व्या. महाभा. ५.१.११९] [वै. सू. १-१-१५] [पा. धा. १४०७] [वै. सू. २-१-१]
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[तत्त्वार्थ. ५-३७]
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[वै. सू. ७-२-२०] [वै. सू. २-१-१८-१९] [व्या. महाभा. १-१- पस्पशा.] [वै. स. ९.२.१] [वै. सू. १-२-५]
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