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________________ स्थिति अने व्ययरूपथी अनाद्यनन्त खरूप छ । आ दार्शनिकोनी मान्यता छ । नागार्जुन तो आ मान्यतानुं निराकरण करे छ । कार्यकारणभावनी कल्पना ज टकी शकती नथी एटले उत्पत्ति वगेरे केम थई शके ! अने आ कल्पनानो 'न खतो नापि परतो न द्वाभ्यां नाप्यहेतुतः। उत्पन्ना जातु विद्यन्ते भावाः कचन केचन ॥ ( चतुष्कोटिविनिर्मुक्तं तत्त्वं माध्यमिका विदुः ॥ उत्तरार्ध पाठान्तर) आ माध्यमिक कारिका (१७) थी निराकरण करेछे । आ ज कारिकाने लईने नयचक्रकारे नियमनियमार (१२) मां विस्तारपूर्वक विचार कर्यों छे। आनी सिद्धिमां, असिद्धि, अयुक्ति, अनुत्पाद, सामग्रीदर्शन अने अदर्शनरूप हेतुओं के जेनें निरूपण प्रमाणवार्त्तिकमां पण विस्तारथी करेलुं छे तेज हेतुओ लईने आ ग्रन्थकारे पण शून्यवादनुं निरूपण कयु छ । अन्ते आज वादनु अरना अन्तरमा प्रौढ युक्तिओथी निराकरण कयुं छे । आमना शिष्य आर्यदेवे 'चतुःशतक' 'हस्तवालप्रकरण' आदि ग्रन्थोनी रचना करी छे हस्तवालप्रकरणनी 'रज्वां सर्प इति ज्ञानं' आ कारिकाने नयचक्रकारे लीधी छे । आ ग्रन्थ- बीजुं नाम 'मुष्टिप्रकरण' पण छे । आना ऊपर दिङ्नागे एक व्याख्या लखी हती । वसुबन्धु. आचार्य वसुबंधु बौद्धमतना प्रकाण्ड दार्शनिक हता । राजा कनिष्कना समयमा 'ज्ञानप्रस्थान' ऊपर एक महान् भाष्यनुं निर्माण थयुं हतुं जे विभाषा कहेवाय छे । जेना ऊपर 'महाविभाषाशास्त्र' नामनी एक टीका छे । ए भाष्यनो आधार लइने वसुबन्धुए खोपज्ञ अभिधर्मकोशनी रचना करी हती । पूर्वमा आ विद्वान वैभाषिक हता। पछीथी एमना ज ज्येष्ठ भ्राता असंगना संसर्गमां आववाथी योगाचारमतमा आल्या हता। आमने माटे बौद्धविद्वानो लखे छे के पाछळथी पोताना पूर्वजीवनमां करेली महायाननी निन्दाना स्मरणथी भारे ग्लानि थइ हती जेथी पोतानी जीभने कापी नांखवा तैयार थइ गया हता। ते वखते पण तेमना भाइ असंगे बचावी लीधा हता अने तेमणे महायान संप्रदायनी सेवानो भार उठान्यो हतो । एमणे महायानसंप्रदाय संबंधी घणा ग्रन्थो बनाव्या हता । . आचार्य मल्लवादिसूरिए अभिधर्मपिटकना प्रत्यक्षविषयक वाक्य- सयुक्तिक निराकरण करती वेळाए अभिधर्मकोश तथा तेना भाष्यनो विस्तारपूर्वक विचार करीने निराकरण कयुं छे। तेज प्रसङ्गमा प्रथम वसुमित्रविरचित 'प्रकरणपाद' नुं पण प्रत्याख्यान कयुं छे । आ वसुवन्धुना समयविषे मतभेद प्रवर्ते छे । जापानना विद्वान तकाकुसूए एनो समय ई० स० ५०० कह्यो छे पण आ वसुबन्धुना ज्येष्ठ भ्राता असङ्गना ग्रन्थो ऊपर चीनी भाषामां लगभग ई० स० ४०० मां विद्यमान धर्मरक्षे अनुवाद कर्यो छे माटे धर्मरक्षथी पूर्ववर्ती आ आचार्य छे । काव्यालङ्कारवृत्तिका वामनपण्डिते पोतानी वृत्तिमा ‘सोऽयं सम्प्रति चन्द्रगुप्ततनयः चन्द्रप्रकाशो युवा जातो भूपतिराश्रयः कृतधियां दिष्टया कृतार्थश्रमः' आम लख्युं छे । त्यां इतिहासकारो 'कृतधियां' पदथी वसुबन्धुने वृत्तिकार याद करे छे एम माने छ । अर्थात् गुप्तवंशीय प्रथम चन्द्रगुप्तना मंत्री तरीके वसुवंधुने कहे छे । आ गुप्तवंशीय राजा तीजा शतकना पूर्वार्धमां थयो हतो । वसुबन्धुनो आ ज समय मानवो ठीक छ । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002587
Book TitleDvadasharnaychakram Part 4
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorLabdhisuri
PublisherChandulal Jamnadas Shah
Publication Year1960
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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