SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छे आमना समयविषे विद्वानोमां मतभेद छे। जैनग्रन्थकारो आर्यस्थूलभद्रना पिता अने नंदराजाना महामात्यशकटालना समान कालीन माने छे एटले वी० सं. १७०नी लगभग थया हशे ! पतञ्जलिकृतमहाभाष्यना समय बाबतमां पण विद्वानोनुं ऐकमत्य जोवामां आवतुं नथी योगदर्शनना कर्ता ए ज पतञ्जलि छे के बीजा ? ए हजु सुधी अणउकेल्यो एक प्रश्न छे. वर्तमानमा आपणी समक्ष जे मुद्रित महाभाष्य छे एना अने नयचक्रमा अपायेला महाभाष्यना पाठोमां घणा स्थले भेद आवे छे आनुं कारण ए छे के समये समये महाभाष्य लुप्त थयुं छे अने समये समये एनो उद्धार पण थयो छ । राजतेरङ्गिणीमां कल्हणे उल्लेख कर्यो छ के विक्रमनी आठमी शताब्दीमां महाभाष्यनो लोप थयो । बीजो पण आवा उल्लेखो मळे छ । आवा लोप अने उद्धारवखते ग्रन्थमां भारे परिवर्तनोनी सम्भावना काढी नाखवा जेवी नथी, उपर्युक्त पाठ मेदोनु मूळ आवां परिवर्तनो छे एम निःशङ्कपणे कही शकाय । ___ नयचक्रना मूळमां 'यस्तु प्रयुक्त कुशलो विशेष' इत्यादि श्लोकने महाभाष्यकारे भ्राजसंज्ञक श्लोक कह्यो छ । आ श्लोकना की कैयट आदि टीकाकारोना मते कात्यायन हशे ! एबुं अनुमान थाय छे । षड्गुरुशिष्य लखे छ के 'स्मृतेश्च कर्ता श्लोकानां भ्राजनानाञ्च कारकः' अर्थात् भ्राजश्लोक-रचयिता ज कोई स्मृति ना कर्ता छ । आ कात्यायन शब्द गोत्रप्रत्ययान्त छ । कात्यायनकौशिकना पुत्र वररुचि पण कात्यायनना नामथी कहेवाय छे, एणे कोई स्मृतिग्रन्थ पण रच्यो हशे ! आ कात्यायने पाणिनिसूत्रोथी केटलाक शब्दोनी सिद्धि नही थवाथी ते सूत्रो पर वार्तिकनी रचना करी। केमके "उक्तानुक्तदुरुक्तानां चिन्ता यत्र प्रवर्त्तते । तं ग्रन्थं वात्तिकं प्राहुर्वार्तिकज्ञा महर्षिणः ॥" एम वार्तिकर्नु लक्षण छ । आ कात्यायनवररुचिनो समय पाणिनिना समयने अनुसरे छे परन्तु महाभाष्यकार पतञ्जलिथी ३००-२०० शतक पूर्ववर्ती छे केमके कात्यायनने पतंजलि सन्मान पूर्वक स्मरे छे । केटलाक ऐतिहासिक कात्यायननो समय वि० पू० चोथी सदी कहे छ। भर्तृहरि. भर्तृहरिए कोई पण पोताना ग्रन्थमा पोतानो कशो ज परिचय आप्यो नथी । तेम पोताना गुरुनु नाम पण साक्षात् आप्युं नथी । नयचक्रग्रन्थमा मल्लवादिसृरिए भर्तृहरिना गुरुतरीके वसुरातनो उल्लेख कर्यो छे । वाक्यपदीना टीकाकार पुण्यराजे पण भर्तृहरिना गुरु तरीके वसुरातनुं नाम लीधुं छे । वसुरातनो मत नयचक्र सिवाय अन्यत्र कोई पण ग्रन्थमा जोवा जाणवा मळतो नथी। आ बन्ने गुरुशिष्यना मतनी नयचक्र कारे सारी एवी समालोचना करी छ । भर्तृहरि पण पोताना गुरुना मतनु-आ मारा गुरुनो मत छ एम कडा विना निरूपण करीने खण्डन करी खमतनुं निरूपण करे छ। __ भर्तृहरिना समयविषे चीनी यात्री ईत्सिंगे घणी गेरसमज फेलावी दीधी छे । जेथी केटलाक विद्वानो भर्तृहरिनो समय विक्रमनी सातमी सदीनु उत्तरार्ध माने छ । युधिष्ठिर मीमांसक विक्रम सं० ४५ थी पूर्वनो माने छ । भारतीय जनश्रुतिप्रमाणे भर्तृहरि विक्रमादित्यना मोटा भाई छ । १. जुओ हेमचन्द्राचार्यरचित परिशिष्ट पर्व । २. २-४-४८८ । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002587
Book TitleDvadasharnaychakram Part 4
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorLabdhisuri
PublisherChandulal Jamnadas Shah
Publication Year1960
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy