SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुचरित श्रुत भक्त श्री. चंदुभाई जन्म जीवन अने मृत्यु ९ आ संसारना प्राणीओ माटे नियत थयेलो क्रम छ । जगतना चोकमा अनेक जीवो जन्मे छे, जीवे छे, अने विदाय ले छे । जन्मकुं अने जीवq तेमनुं ज सार्थक छे के, जेओ पोताना सद्विचार अने सदाचारनी सुवास चीरकाल सुधी मघमघती रहे, तेवी रीते जीवे छ । अहीं आपने अवा ज एक साधुचरित श्रुत भक्तनी पीछान करवानी छ । गरवी गुजरातना वडोदरा शहेरथी त्रणेक माईल दूर आवेलु नानकड़े छाणी गाम कामथी घj मोटुं छे । बे सुंदर जिनालयो विशाल काय उपाश्रयो अने श्री जिनागमादि साहित्यनां सुरक्षणार्थे निर्मित थयेल भव्य श्रीजैन श्वेतांबर ज्ञानमंदिर आदिथी सुशोभित छे । जैनोनी लगभग सो घरनी वसती धरावता आ गामना श्रावको धर्म श्रद्धा अने धर्म रक्षा माटे पंकायेला छे । आ छाणीमांथी १७ पुरुषो अने पचास दुपरांत स्त्रीओए संयम ग्रहण करी, त्याग मार्गनी कठिन आराधना करी छ । श्री. चंदुभाई आ छाणी गामना वतनी छ । छाणीनी भूमिना स्वाभाविक सुसंस्कारो उपरांत तेमनामा बीजी पण अनेक विशेषताओ छ । प्रकृतिए सज्जन धर्माराधनपरायण अने धर्मसेवाना हर कोई कार्यमां यथाशक्ति फाळो आपवामां तत्पर श्री. चंदुभाई एटला ज प्रमाणिक अने गुरुभक्त छे। तेओनां पितानुं नाम छ श्री. जमनादास हीराचंद । श्री. जमनादासभाई पण अडग धमश्रद्धालु हता, प्रतिष्ठा अंजनशलाका आदि कार्यों केवल श्री निनभक्तिथी करवामां तेओए पोताना जीवननो घणो समय गाळयो हतो। जीवनना अंतिम वर्षामां वृद्धवये संयम ग्रहण करी, तेओ जीवन कल्याण करी गया छ । श्री. चंदुभाई जिनपूजा, प्रतिक्रमण अने पौषाधदि द्वारा कल्याण मार्ग साधी रह्या छ । चतुर्थव्रत ग्रहण पण सं. १९९४ मां कयुं हतुं, बालवयथी न तेओ धर्माराधक क्रियाभिरुची छे। श्री संघना वहीवटी कार्यमां पण तेमणे घणो भोग आप्यो छे, पोताना व्यवसायने गौण करी श्री संघनी प्रवृत्तिमा तेओ वर्षोथी भाग ले छे. श्री जैन श्वेतांबर ज्ञान मंदिरनी कारभार हजी सुधी संभाली रह्या छ । पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय लब्धि सूरीश्वरजी महाराजना गुणानुगगथी तेओश्री 'लब्धि सूरीश्वर जैन ग्रंथमाला 'नुं सारू संचालन करे छे. आ ग्रंथमाला आज सुधीमा जैन साहित्यनां ४४ प्रथरत्नोनुं प्रकाशन करी चुकी छे आ ग्रंथमाला उपरांत श्री. चंदुभाई 'श्री कमलसूरीश्वरजी शास्त्र संग्रह ' तथा उपाध्यायजी ' श्री वीरवीजयजी शाल संग्रह' आदि ग्रंथ भंडारोनी पण सुंदर देखरेख राखी रह्या छे. श्री चंदुभाईनुं कुटुंब पण धर्म परायण छे. तेमना लघु पुत्र श्री जयंतिलाल १८ वर्षनी युवानवये संयम ग्रही, मुनीश्री जिनभद्र विजयजी तरीके विचरी रह्या छे. तेमनां पुत्री श्री पद्माबहेन (श्री प्रियंकरा श्री जी) तथा दोहित्रीओ ( श्री पुष्पलता श्रीजी) जयलक्ष्मीश्रीजी (श्री कमल प्रभाश्रीजी)' पण संयमी जीवन जीवी रह्या छे. ___ शारिरीक अस्वास्थ्य अने वृद्ध वये पण जे रीते धर्मसेवा तेओ करे छे तेवी ज रीते अखंड सेवा परायण जीवन जीवतां चिरायु बनो तेवी मंगल कामना छे. चन्द्रबाहु मोहनलाल शाह Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002587
Book TitleDvadasharnaychakram Part 4
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorLabdhisuri
PublisherChandulal Jamnadas Shah
Publication Year1960
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy