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हे नाथ ! लोकहितचिन्तक ! हे वरेण्य ! कारुण्यसागर ! गुणाकर ! हे शरण्य ! शीघ्रं विधाय च कृपां परमां कृपालो, दुःखांकुरोद्दलन-तत्परतां विधेहि।।३६ ।।
हे नाथ ! भवान् सर्वेषां लोकानां हितचिन्तकः, श्रेष्ठतमः, * करुणावरुणालयः, गुणरत्नमहोदधिः, जगतां शरण्यश्चास्ति। हे * * परमदयालो ! यथाशीघ्रं मयि कृपां कृत्वा मम यानि दुःखदल बीजांकुराणि *
सन्ति, येषां कारणेन पौनःपुन्येनाहं संसारदावानले पतामि। तेषां * * समूलोच्छेदनं कर्तुं भवान् तत्परतां करोतु।
- हे स्वामिन् ! आप समस्त लोकों के हितैषी, श्रेष्ठतम, करुणासागर, * गुणरत्नाकर हैं। आप सभी को पावन शरण प्रदान करने वाले हैं। हे दयालु ! * मुझ पर यथाशीघ्र कृपाभाव प्रदर्शित करते हुए मुझे दुःख जालों से विमुक्त * * कीजिए। जिन दुःखों, कर्म-कषायों के कारण बारम्बार मैं जन्म-मरण के चक्कर * * में फँसकर कष्ट पा रहा हूँ उनका जड़मूल से विनाश करने के लिए तत्परता दिखाइए।
सामि ! तमे सलोना हितैषी, श्रेष्ठतम, ३१॥सा२, रत्ना२ छो. પી. તમે બધાને પાવન શરણ પ્રદાન કરનારા છો. હે દયાળુ! મારા પર કૃપાભાવ રાખી મને છેદુઃખના વમળોથી મુક્ત કરો. જે દુઃખો, કર્મકગાયોને કારણે વારંવાર હું જન્મ-મરણના
ચક્કરમાં ફસાઈને કષ્ટ પામુ છું, તેનો જડમૂળથી વિનાશ કરવા માટે તત્પરતા બતાવો.
___ O Lord ! You are the benefactor of all worlds, the supreme, the ocean of e compassion, and the sea of virtues. You are the provider of the pious refuge to
all. O Kind one ! Please at once show mercy on me and liberate me from the webs of miseries. Please display the eagerness to root out the miseries and
malignancy of karmas that entrap me time and again in the cycles of birth and of death and cause me torments.
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