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* व्यस्तता तथा पूर्व में प्रारम्भ किए गए आधे-अधूरे पड़े साहित्य सृजन की
व्यग्रता के कारण काफी विलम्ब हो गया। इस बीच मेरे शिष्यरत्न आचार्य जिनोत्तम सूरि ने अनेक बार मुझसे अनुरोध किया कि स्तोत्र रचना के कार्य को यथाशीघ्र प्रारम्भ कीजिए। मैं भी उत्सुक था, भावना भी उत्कृष्ट
थी किन्तु फिर भी स्फुरणा त्वरित न हो सकी। अब, काफी समय पश्चात् * देव-गुरु-कृपा से अनुकूल स्फूर्ति आई। दोनों स्तोत्रों का क्रमशः कार्य
पूर्ण किया । वृद्धावस्था के कारण कोई विस्मृतिजन्य स्खलना न रहे, अतः संशोधन का कार्य श्री पाण्डेय को प्रदान किया। उन्होंने पूर्ण सावधानी से सहर्ष कार्य को सम्पादित किया। ___ 'श्री सुशील कल्याण मन्दिर स्तोत्र' की प्रत्येक पंक्ति का सौरस्य यदि सुधी पाठकों, भक्तों को भक्तिभाव से भर सके तो मैं अपना प्रयास सार्थक समझूगा। संस्कृत-हिन्दी भाषा में अर्थ लिखकर मैंने सुगम सुबोध बनाने का प्रयास किया। साथ ही ५१ मन्त्र-यन्त्रों का सुदेव-गुरु-कृपा से गुम्फन किया है। मेरा प्रयास लोक कल्याणकारी हो-"शिवमस्तु सर्वजगतः' की * सद्भावना के साथ.....!
श्रीगुरुचरणचंचरीकः -आचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरिः
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