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________________ सिंह गज वृषभ लक्ष्मी पुष्पमाला चन्द्र सूर्य ऋषभ अजित सम्भव चोखा से धर्म चर्चा एक बार चोखा नाम की एक विदुषी परिव्राजिका पर्यटन करती हुई मिथिला में आई। वह वेद आदि शास्त्रों की पारंगत थी। अपना प्रभाव जमाने के लिए वह राजकुमारी मल्ली से धर्म चर्चा करने के लिए राजमहलों में आई। राजकुमारी ने पूछा - "तुम्हारे धर्म का मूल क्या है ?" परिव्राजिका - "शुचिता (स्नान आदि कर्म) से पवित्र रहकर धर्म साधना करना ही हमारा धर्म है।" मल्लीकुमारी ने कहा- “धर्म का मूल एक ही है - त्याग ! त्याग से मन की शुद्धि तो स्वतः ही हो जाती है। बाह्य शुद्धि मात्र से मनुष्य की आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता। राजकुमारी की तर्क एवं युक्तिसंगत विवेचना से परिव्राजिका पराजित -सी होकर चली गई। परन्तु उसने इस पराजय का बदला लेने की गाँठ बाँध ली । (चित्र ML-1 / अ ) अभिनन्दन चोखा परिव्राजिका एक बार पांचाल जनपद के राजा जितशत्रु के अन्तःपुर में गई। प्रसंगवश राजा ने अपनी रानियों के रूप लावण्य की प्रशंसा की, तो हँसकर चोखा ने कहा- “राजन् ! आप तो अभी कूपमंडूक हैं। संसार में त्रिलोक सुन्दरी तो एक ही है । मिथिला की राजकुमारी मल्ली । उसे पाओ तो जानें।" (चित्र ML-1 / ब) २. चम्पा का राजा चन्द्रछाय, ३. श्रावस्ती का राजा रूपी, ४. वाराणसी का राजा शंख, ५. हस्तिनापुर - नरेश अदीनशत्रु, तथा ६. पांचाल - नरेश जितशत्रु । पांचाल - नरेश भी मल्लीकुमारी के सौन्दर्य की चर्चा सुनकर उसकी तरफ आकर्षित हो गए। छह राजाओं को प्रतिबोध विमल पूर्व-जन्म के जिन छहों मित्रों ने भिन्न-भिन्न स्थानों पर राजकुल में जन्म लिया था वे युवा होने पर राजा बने। जिनके नाम हैं १. साकेतपुर का राजा प्रतिबुद्धि, Jain Education International 2010_03 सुमति छहों राजाओं ने भिन्न-भिन्न माध्यमों से राजकुमारी मल्ली के अद्वितीय सौन्दर्य की चर्चा सुनकर मिथिला नरेश कुंभ के पास विवाह प्रस्ताव भेजा । अनन्त मिथिलापति कुंभ जानते थे मल्लीकुमारी एक अलौकिक आत्मा है। देव-देवेन्द्रों द्वारा पूज्य तीर्थंकर बनने वाली है। वह संसार के इन भोगों में कभी भी लिप्त नहीं होगी। अतः उन्होंने सभी छहों राजाओं के दूतों को उनकी अज्ञानता पर हँसते हुए लौटा दिया। Illustrated Tirthankar Charitra O-O पद्मप्रभ धर्म ( ७२ ) शान्ति For Private & Personal Use Only कुन्थु A m सचित्र तीर्थंकर चरित्र a अर www.jainelibrary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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