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पार्श्व
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चन्द्रप्रभ
सुविधि
अपमानित होकर छहों राजाओं ने युद्ध करके संसार के दुर्लभ कन्या- रत्न को प्राप्त करने की ठान ली। मिथिला नगरी के बाहर चारों ओर छह राज्यों की सेना ने घेरा डाल लिया और राजा कुंभ के पास युद्ध का सन्देश भिजवा दिया।
अचानक चारों तरफ से शत्रु सेना से घिर जाने की खबर मिलने पर महाराज कुंभ चिंतित हो उठे । भगवती मल्ली ने पिताश्री को चिंतित देखा तो कारण पूछा ! पिता ने कहा- "पुत्री ! तेरे ही कारण यह संकट आया है ? अब इससे किस प्रकार निपटें, यही मेरी चिंता का विषय है ?"
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भगवती मल्ली तो जन्मजात अवधिज्ञानी थे। उन्होंने कहा - " पिताश्री ! आप चिंता न कीजिए। मैं तो पहले से ही यह सब जानती थी कि एक दिन यह होने वाला है। इसका उपाय भी मेरे पास है। आप छहों राजाओं को अलग-अलग विवाह आमंत्रण दीजिए और उन्हें अपनी अशोक वाटिका के मोहन गृह में अलग-अलग कक्षों में ठहरा दीजिए। आगे सब मैं स्वयं सम्हाल लूँगी।”
शीतल
भगवती मल्ली ने पूर्व योजनानुसार अशोक वाटिका में एक मोहन- गृह बनवाया था। जिसमें छह सुन्दर कक्ष थे। प्रत्येक के बीच में जाली लगी हुई थी । कमरों में सुन्दर सिंहासन लगे थे।
मल्लि
उस मोहन घर के छह कक्षों के मध्य में एक स्वर्ण पीठिका पर राजकुमारी ने अपनी सुन्दर साक्षात् स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर स्थापित कर दी थी। प्रत्येक कक्ष में बैठा व्यक्ति इस स्वर्ण प्रतिमा को देख सकता था, परन्तु वे परस्पर एक-दूसरे को नहीं देख सकते थे। इस स्वर्ण प्रतिमा के सिर पर एक ढक्कन लगा था। राजकुमारी प्रतिदिन भोजन करके भोजन का एक ग्रास प्रतिमा का ढक्कन खोलकर उसमें डाल देती और फिर ढक्कन से बंद कर देती । इस प्रकार वह भोजन प्रतिमा के भीतर पड़ा सड़ने लगा। उसमें असह्य दुर्गन्ध पैदा हो गई। देखने वाले चकित थे कि राजकुमारी यह क्या कर रही हैं ? परन्तु सभी जानते थे कि राजकुमारी परम बुद्धिमती हैं, जो भी कुछ कर रही हैं, उसके पीछे भविष्य की कोई उलझी गुत्थी सुलझाने का प्रयोजन छिपा होगा ।
श्रेयांस
योजनानुसार छहों राजाओं को मोहन- गृह के सुन्दर रमणीय कक्षों में ठहरा दिया। राजकुमारी की स्वर्ण प्रतिमा को देखकर सभी राजा मोहित थे कि राजकुमारी हमारे सामने ही खड़ी है, अभी हमसे प्रेम के दो बोल बोलेगी । (चित्र ML - 1/स)
मल्लीकुमारी भी अपनी सेविकाओं के साथ मोहन घर में आईं और छिपकर एक तरफ खड़ी हो गईं। कुमारी के संकेत पर दासी ने प्रतिमा का ढक्कन खोल दिया। एकदम भयंकर दुर्गन्ध फैलने लगी। कुछ ही क्षणों में अलग-अलग कक्षों में बैठे राजाओं का दुर्गन्ध के मारे दम घुटने लगा। बाहर से उनके द्वार बन्द थे । उन्होंने नाक बन्द कर ली और असह्य दुर्गन्ध से घबराकर पुकारने लगे- "यह क्या हो रहा है? मुझे बन्द क्यों कर दिया ? मेरा दम घुट रहा है। द्वार खोलो !" अचानक भगवती मल्ली उनके समक्ष उपस्थित हुईं और सम्बोधित किया - " विषयांध नारी प्रेमियो ! थोड़ी देर पहले आप सब इस प्रतिमा को एकटक निहार रहे थे। इसकी सुन्दरता पर मुग्ध हो रहे थे और इसे पाने को आतुर ! और अब अब उसी से घृणा करके नाक बन्द कर लिया? और भागने के लिए उतावले हो रहे हो ? यह कैसा सौन्दर्य-प्रेम है आपका ?"
मुनिसुव्रत
2010 03
वासुपूज्य
सभी राजाओं ने एक साथ चीखकर कहा - " हमसे यह मजाक क्यों कर रही हो? यह दुर्गन्ध हमसे सही नहीं जाती ?"
भगवान मल्लीनाथ
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