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________________ TOLA सुपाच चन्द्रप्रभ सुविधि शीतल वासुपूज्य ध्वजा श्रावक अर्हन्त्रक का जहाज लौटते समय मिथिला के बंदरगाह पर रुका। व्यापारियों ने कुंभ राजा के राज-दरबार में विविध प्रकार के उपहार भेंट किये। अर्हन्त्रक ने राजकुमारी मल्ली के लिए वे देवनामी दिव्य कुण्डल भेंट किये, जिन्हें देखकर राजा एवं समस्त दर्शकगण चकित रह गये। ___ एक बार उन दिव्य कुण्डलों की एक संधि (जोड़) टूट गई। राजा कुंभ ने कुशल स्वर्णकारों को संधि जोड़ने के लिए दी। परन्तु कोई भी कुशल कलाकार वह कुण्डल जोड़ नहीं सका। इस बात से राजा राज्य के प्रमुख स्वर्णकारों पर रुष्ट हो गये और उन्हें धिक्कारा-“तुम कैसे कारीगर हो? एक कुण्डल भी नहीं जोड़ सके। ऐसे व्यर्थ के कलाकारों से मुझे कोई काम नहीं। चले जाओ, मेरे राज्य से बाहर।" राजा द्वारा निष्कासित कलाकार अन्य देशों में चले गये। वे जहाँ भी जाते मल्लीकुमारी के अद्वितीय रूप सौन्दर्य की चर्चा करते रहते। कलाकार की मूर्खता एक बार मल्लीकुमारी के छोटे भाई मल्लिदिन्न ने अपने राजमहल में एक अद्भुत रंगशाला (चित्रशाला) बनवाई। उन चित्रकारों में एक अद्भुत कुशल चित्रकार भी था। उसने राजमहलों के गवाक्ष की जाली में से एक बार राजकमारी मल्ली के पाँव का अंगठा देख लिया। उसने राजकुमारी का हुबहू आदमकद चित्र दीवार पर बना दिया। सोचा, अपनी बहिन का हूबहू चित्र देखकर राजकुमार प्रसन्न होंगे, और मुझे मुँह माँगा पद्य सरोवर पुरस्कार देंगे। चित्रशाला के पूर्ण होने पर राजकुमार अपनी रानियों के साथ रंगशाला के शृंगार रसों से परिपूर्ण चित्रों का अवलोकन कर रहा था। अचनाक मल्लीकुमारी के चित्र पर कुमार की दृष्टि पड़ी, उसे भ्रम हो गया। लज्जा का अनुभव करते हुए बोला-“अरे ! मेरी माता समान पूजनीया बहिन यहाँ उपस्थित है और मैं इस प्रकार के चित्र देख रहा हूँ?" उसकी धायमाता ने बताया-“कुमार ! ..पको भ्रम हो गया है, यह पूजनीया ज्येष्ठ भगिनी नहीं, उनका चित्र है !" कुमार ने सावधानी से देखा, तो वह एक साथ आश्चर्य और क्रोध के भावों से विचलित-सा हो गया। आश्चर्य था-ऐसी कुशल कला पर; जो चित्र जीवन्त-सा प्रतीत हो रहा था, किन्तु क्रोध था, उस चित्रकार की दुर्बुद्धि पर कि उसने रंगशाला में मेरी पूजनीया बहिन का एकदम जीवन्त-सा चित्र यह कैसे बना दिया? क्या उसने कभी मेरी माता समान बहिन को इतनी गहराई से देखा है विमान भवन कि उसके नख-शिख का साक्षात् रूप चित्रित कर दिया? ___ क्रोधित राजकुमार ने चित्रकार को बुलाया, पूछने पर उसने निवेदन किया-“मैंने तो जाली से सिर्फ राजकुमारी के पाँव का अंगूठा ही देखा है, परन्तु मुझे चित्रकला-लब्धि प्राप्त होने से तूलिका स्वयं चलती है N और साक्षात् स्वरूप अंकित कर देती है।" चित्रकार के कथन पर भी राजकुमार का क्रोध शांत नहीं हुआ। उन्होंने चित्रकार का अँगूठा कटवाकर उसे देश निकाला दे दिया। खिसियाये हुए चित्रकार ने राजकुमारी का दूसरा चित्र बनाकर हस्तिनापुर के राजा अदीनशत्रु को भेंट NET किया। सम्मान में भरपूर पुरस्कार प्राप्त हुआ। अब हस्तिनापुर आदि क्षेत्रों में भी मल्लीकुमारी के अद्वितीय रूप निधूम सौन्दर्य की चर्चा होने लगी। अदीनशत्रु मल्लीकुमारी के रूप सौन्दर्य पर आकृष्ट हो गया। अग्नि भगवान मल्लीनाथ ( ७१ ) Bhagavan Mallinath समुद्र राशि Jain Education International 2010_03 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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