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सिंह
गज
छह मित्र एवं महाबल राजा, यों सातों ने दीक्षा ले ली। तप आदि करने लगे। महाबल मुनि के मन में अपने विगत जीवन का गर्व जाग उठा-"मैं हर बात में अपने मित्रों से ऊँचा और बढ़-चढ़कर रहा हूँ, अब यदि तप-साधना में समान रहा तो आगे भी समान ही रहूँगा।" अपनी अलग विशेषता रखने की भावना से महाबल मुनि ने गुप्त रूप से तप करना प्रारंभ किया। सातों मित्र साथ में तप का प्रत्याख्यान करते, किन्तु जब छहों मित्र पारणा के लिए आहार ले आते तो महाबल मुनि कुछ न कुछ बहाना बनाकर अपना तप आगे बढ़ा देते। पारणा नहीं करते। इस प्रकार तपश्चरण में भी प्रतिस्पर्धा चलने लगी और उसका कारण था-दूसरों से स्वयं को विशिष्ट रखने की गर्व भावना। इस प्रकार मित्रों के साथ कपट (माया) करने के कारण उत्कष्ट तपोबली महाबल मुनि अपनी विशुद्ध भाव श्रेणी से नीचे गिर गये। मायाचार के कारण "स्त्रीवेद" का बंध कर लिया। किन्तु फिर भी उनके मन में तप-त्याग-ध्यान आदि की उच्चतम भावना रही, इस उत्कृष्ट भाव-विशुद्धि के कारण आगे जाकर तीर्थंकर-नाम-कर्म का भी बंध कर लिया। वहाँ पर सातों ही मुनियों ने दो मास का संथारा करके देह त्यागी और अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र बने। ___ अनुत्तर विमान से ३२ सागरोपम का देव आयुष्य पूर्णकर छहों मित्र अलग-अलग देशों के राजकुमार बने। मल्लीकुमारी का जन्म
मिथिला के कुंभ राजा की महारानी प्रभावती के गर्भ में महाबल के जीव ने जन्म लिया। गर्भ के तीन महीने बाद रानी प्रभावती के मन में एक दोहद उत्पन्न हुआ। “पाँचों रंग के सुगंधित पुष्पों की सजी हुई शय्या हो और मैं उत्तम सुगंधित मल्लदाम (गुच्छा-गुलदस्ता) सूंघती रहूँ।'' पुण्यशाली आत्मा के पुण्य से सभी मन इच्छित पूर्ण होते हैं। रानी का दोहद भी पूर्ण हुआ। मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी के अर्ध रात्रि के समय रानी के गर्भ से एक महान् पुण्यशाली अत्यन्त रूपवती कन्या ने जन्म लिया। तीर्थंकर का स्त्री शरीर में जन्म लेना सभी के लिए आश्चर्यकारक था, परन्तु कर्मबन्ध को स्वयं अनन्त बलशाली भगवान भी नहीं टाल सकते। __ मल्लदाम (गुलदस्ता) के दोहद के कारण राजकन्या का “मल्लीकुमारी" नाम रखा गया। मल्लीकुमारी को स्नान के बाद अत्यन्त सुगंधित और सुन्दर मल्लदाम (गुलदस्तों) का शौक था। राजकुमारी का शौक पूरा करने के लिए देश-देश के मालाकार अद्भुत-अद्भुत गुलदस्ते बनाकर लाते, राजकुमारी को भेंट कर मनमाना पुरस्कार पाते। मल्लीकुमारी के मल्लदाम के गुलदस्तों की विचित्र-विचित्र कहानियाँ देश-विदेश में प्रसिद्ध हो
वृषभ
लक्ष्मी
गई।
चन्द्र
दिव्य कुण्डल
एक बार चम्पा नगरी का प्रसिद्ध धनाढ्य व्यापारी अर्हन्नक अनेक लोगों के साथ समुद्र यात्रा पर गया। विदेशों से खूब धन वैभव कमाकर लौटते समय समुद्र के वीच जिनधर्म द्वेषी देव ने श्रावक अर्हन्नक की धर्म दृढ़ता की परीक्षा लेने के लिए अत्यन्त भयंकर उपसर्ग किये। भय, यातना, प्रलोभन आदि अनेक प्रकार के मारणांतिक प्राणघाती कष्ट देकर अर्हनक को जिनधर्म त्यागने के लिए मजबूर किया। परन्तु अर्हन्नक को मृत्यु स्वीकार थी, धर्म छोड़ना नहीं। उसकी धर्म दृढ़ता पर प्रसन्न होकर देवता ने उसे दिव्य कुण्डलों की जोड़ी भेंट स्वरूप दी।
Illustrated Tirthankar Charitra
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सचित्र तीर्थकर चरित्र
विमल
अनन्त
धर्म
शान्ति
अर
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