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________________ अम () () सम्म म CD) (Dया ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन सुमति पद्मप्रभ परिशिष्ट ३ तीर्थंकरों के अतिशय सिंह (क) तीर्थंकरों के चौंतीस अतिशय संसार में तीर्थंकर को सर्वश्रेष्ठ पुरुष के रूप में पूज्यता प्राप्त है, क्योंकि वे अध्यात्म की भूमिका पर चार घनघाति गज | कर्मों का नाश कर अनन्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र और अनन्त शक्ति सम्पन्न हो जाते हैं। उनके बाहरी और भीतरी व्यक्तित्व में जो विशेषतायें प्रकट होती हैं, आगमिक भाषा में उन्हें चौंतीस अतिशय कहते हैं। जैसे वृषभ लक्ष्मी १. केश-रोम श्मश्रु नहीं बढ़ते हैं। २. शरीर रोगरहित रहता है। ३. रक्त और माँस दूध के समान श्वेत होते हैं। ४. श्वासोच्छ्वास में कमल जैसी सुगंध होती है। ५. आहार-नीहार विधि नेत्रों से अगोचर होती है। ६. मस्तक के ऊपर आकाश में तीन छत्र होते हैं। ७. उनके आगे-आगे आकाश में धर्मचक्र चलता है। ८. उनके दोनों ओर आकाश में श्वेत चामर होते हैं। ९. स्फटिक सिंहासन होता है। १०. इन्द्रध्वज आगे-आगे चलता है। ११. जहाँ-जहाँ तीर्थंकर भगवान ठहरते हैं, वहाँ-वहाँ अशोक वृक्ष होता है। १२. उनके चारों ओर दिव्य प्रभा-मण्डल होता है। १३. तीर्थंकरों के आस-पास का भूमि-भाग रम्य होता है। १४. काँटे औंधे मुँह हो जाते हैं। १५. ऋतुएँ अनुकूल रहती हैं। १६. सुखकारी पवन चलती है। १७. भूमि की धूल जल-बिन्दुओं से शान्त रहती है। १८. पाँच प्रकार के अचित्त फूलों का ढेर लगा रहता है। १९. अशुभ शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श का अभाव हो जाता है और शुभ शब्द आदि प्रकट होते हैं। २०-२१. भगवान की वाणी एक योजन तक समान रूप से सुनाई देती है। २२. भगवान का प्रवचन अर्द्ध-मागधी भाषा में होता है। २३. समस्त श्रोता प्रवचन को अपनी-अपनी भाषा में समझते हैं। २४. भगवान के सानिध्य में जन्मजात वैरी भी अपना वैर भूल जाते हैं। २५. विरोधी भी नम्र हो जाते हैं। २६. प्रतिवादी निरुत्तर हो जाते हैं। २७-२८. भगवान के आस-पास पच्चीस योजन के परिमण्डल में ईति, महामारी आदि नहीं होती। २९-३३. जहाँ-जहाँ भगवान विहार करते हैं वहाँ-वहाँ स्वचक्र, परचक्र, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, दुर्भिक्ष, रोग आदि के उपद्रव नहीं होते। ३४. भगवान के चरण-स्पर्श से उस क्षेत्र के पूर्वोत्पन्न सारे उपद्रव शान्त हो जाते हैं। (समवायांग सूत्र ३४) सूर्य Illustrated Tirthankar Charitra ( १८२ ) सचित्र तीर्थकर चरित्र Jal-Education-internationa l jaimehinema
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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