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(F) सुपार्श्व
सुविधि
(ख) पैंतीस वचनातिशय
तीर्थंकर केवलज्ञान प्राप्त कर लोक-कल्याण हेतु देशना देते हैं। वे वही कहते हैं जो उन्होंने सत्यरूप में जीया है। इसलिए उनकी भाषा में सत्य के सिवाय कुछ नहीं होता। उनका सम्पूर्ण जीवन १८ दोषों रहित होता है। उनके वचन भी अतिशय सम्पन्न होते हैं। आगम में वचन की पैंतीस विशेषताओं का उल्लेख है। तीर्थंकरों की वाणी मेघ के समान गम्भीर होती है और वह कभी निष्फल नहीं जाती। उनकी वाणी इन पैंतीस अतिशयों से सम्पन्न होती है
१. लक्षणयुक्त ।
२. उच्च स्वभावयुक्त। ३. ग्राम्य शब्दों से रहित ।
४. मेघ जैसी गम्भीर ।
५. प्रतिध्वनि युक्त ।
चन्द्रप्रभ
६. सरल।
७. राग (स्वर) युक्त।
८. अर्थ की गम्भीरतायुक्त।
९. पूर्वापर विरोधरहित ।
१०. शिष्टता सूचक।
११. संदेहरहित ।
१२. पर दोषों को प्रकट नहीं करने वाली ।
१३. श्रोताओं के हृदय को आनन्दित करने वाली। १४. देशकाल के अनुरूप ।
१५. विवेच्य विषय का अनुसरण करने वाली। १६. परस्पर सम्बद्ध और अति विस्तार से रहित।
१७. पद व वाक्यानुसारिणी ।
१८. प्रतिपाद्य विषय के बाहर न जाने वाली । १९. अमृत-सी मधुर
परिशिष्ट ३
मल्लि
मुनिसुव्रत
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नमि
| शीतल
( १८३ )
२०.
मर्मघात से रहित ।
२१. धर्म-मोक्षरूप पुरुषार्थ की पुष्टि करने वाली । २२. अभिधेय अर्थ की गम्भीरता से युक्त | २३. आत्म-प्रशंसा व पर-निन्दा से मुक्त। २४. सर्वत्र श्लाघनीय ।
२५. कारक, लिंग आदि व्याकरण सम्मत।
२६. श्रोताओं के मन में जिज्ञासा जाग्रत करने वाली ।
२७. अद्भुत रचना में सक्षम ।
२८. विलम्ब दोषरहित ।
२९. विभ्रम दोषरहित।
३०. विचित्र अर्थ वाली।
३३. तत्त्व व ओजयुक्त।
३४.
३५.
श्रेयांस
३१. सामान्य वचन से कुछ विशेषता वाली।
३२. वस्तु-स्वरूप का साकार वर्णन प्रस्तुत करने में
समर्थ ।
स्व-पर की खिन्न नहीं करने वाली।
अरिष्टनेमि ।
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वासुपूज्य
विवक्षित अर्थ को सम्यक व पूर्ण रूप से सिद्ध करने वाली ।
( समवायांग सूत्र )
पार्श्व
Appendix 3
महावीर
ध्वजा
कुम्भ
पद्म सरोवर
समुद्र
विमानभवन
रत्न
राशि
निर्धूम अग्नि
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