________________
सिंह
गज
वृषभ
आठ वर्षीय बालक वर्द्धमान के साहस, सूझ-बूझ और निर्भीकता की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई। स्वर्ग मे भी उनके अद्वितीय पराक्रम की प्रशंसा होने लगी। पाठशाला में इन्द्र द्वारा परीक्षा
वर्द्धमान आठ वर्ष पूर्ण कर नवें वर्ष में प्रवेश कर रहे थे।
माता-पिता ने सोचा, वर्द्धमान को क्षत्रियोचित शस्त्र-विद्या और शास्त्र-विद्या दोनों का ही ज्ञान कराना चाहिए। इसलिए पाठशाला में भेजा गया। पाठशाला में जाकर उन्होंने एक सामान्य विद्यार्थी की भाँति आचार्य को सम्मानपूर्वक अभिवादन किया। ज्ञानी होते हुए भी विद्यादाता गुरु को पूर्ण सम्मान दिया। आचार्य ने वर्णमाला का पहला पाठ वर्द्धमान को पढ़ाया। वर्द्धमान चुपचाप सुनते रहे। कुछ समय बाद आचार्य ने वर्द्धमान को बुलाकर पूछा- “कुमार ! तुम चुपचाप बैठे हो, पाठ याद नहीं करते।" । ___कुमार ने सम्पूर्ण वर्णमाला सुना दी, आचार्य चकित होकर देखते रह गये। तभी एक तिलकधारी वृद्ध ब्राह्मण पाठशाला में आया। आचार्य ने समागत विद्वान् का सम्मान किया। ब्राह्मण ने व्याकरण के कुछ जटिल प्रश्न आचार्य से पूछे। आचार्य उत्तर नहीं दे सके। वे मौन होकर भूमि की ओर देखने लग गये। ब्राह्मण मुस्कराकर बोला-'आचार्य ! आप जाने दीजिए। आपका यह नया विद्यार्थी मेरी शंकाओं का सही समाधान कर देगा। आप आज्ञा दें, तो मैं इनसे पूछ लूँ।"
आचार्य ने बालक वर्द्धमान की तरफ देखकर कहा-“ठीक है ! आप कुमार से पूछिए ?" वृद्ध ब्राह्मण ने बालक वर्द्धमान से व्याकरण के जटिल सूत्र, अक्षरों के पर्याय, उनके विकल्प आदि पूछे, तो बालक वर्द्धमान ने निःसंकोच धारा प्रवाह उन सबके सटीक उत्तर दे दिये। आचार्य तो दाँतों तले अंगुली दबाकर दिग्मूढ़ से देखते रह गये।
तभी वृद्ध ब्राह्मण मुस्कराये-"आचार्य ! आपको पता है राजकुमार वर्द्धमान के रूप में इस युग का ज्ञान-सूर्य आपके समक्ष उपस्थित है। ये ही इस युग में भावी तीर्थंकर महाज्ञानी भगवान महावीर होंगे।"
कहा जाता है-देवराज ने अपने प्रश्नों और वर्द्धमान द्वारा प्रदत्त उत्तरों को संकलित कर एक ग्रन्थ बनाया-“ऐन्द्र व्याकरण"। (चित्र M-10) परिवार परिचय
राजा सिद्धार्थ जिस ज्ञातकुल के अधिनायक थे-वह ज्ञातकुल भगवान ऋषभदेव का इक्ष्वाकुवंशीय कुल था। भगवान ऋषभदेव का गोत्र भी काश्यप था। सिद्धार्थ का गोत्र भी काश्यप था। गौरव की बात यह है कि २२ तीर्थंकर इक्ष्वाकुवंशीय काश्यप गोत्री हुए हैं।
देवी त्रिशला वैशाली गणाध्यक्ष चेटक की बहिन थीं। त्रिशला का दूसरा नाम विदेहदत्ता (दिन्ना) तथा प्रियकारिणी प्रसिद्ध था। (चित्र में सबसे ऊपर)
राजा सिद्धार्थ के छोटे भाई वर्द्धमान के पितृव्य (काका) का नाम सुपार्श्व था तथा राजा सिद्धार्थ के ज्येष्ठ पुत्र का नाम था-नन्दिवर्धन। भाभी का नाम ज्येष्ठा था। (चित्र में मध्य में)
वर्द्धमान की एक बहिन भी थी सुदर्शना। सुदर्शना का विवाह किसके साथ कब हुआ इसका उल्लेख नहीं मिलता है, किन्तु सुदर्शना का पुत्र जमालि राजकुमार प्रसिद्ध है। (चित्र में नीचे-दायें) Illustrated Tirthankar Charitra
सचित्र तीर्थकर चरित्र
लक्ष्मी
चन्द्र
Jalodlucation-internation
weimehren