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________________ ध्वजा वर्द्धमान : नामकरण जन्म के बारहवें दिन राजा सिद्धार्थ ने एक विशाल प्रीतिभोज का आयोजन किया, जिसमें अपने समस्त मित्र, स्वजन-परिजनों को आमंत्रित किया। सभी को भोजन, वस्त्र आदि से सम्मानित करके राजा सिद्धार्थ ने उनके समक्ष अपने विचार व्यक्त किये-“जब से यह बालक देवी त्रिशला के गर्भ में आया है, उसी दिन से | हमारे परिवार में परस्पर प्रीति, सद्भाव, सम्मान, लक्ष्मी, धन, धान्य, मणि-सुवर्ण आदि की अभिवृद्धि हुई है। प्रजा में आरोग्य, सुख-शान्ति, सौहार्द बढ़ा है। इस प्रकार इस पुत्र-रत्न के आगमन से हमारी श्री, समृद्धि, | आरोग्य कीर्ति निरन्तर वर्द्धमान रही है जिस कारण देवी त्रिशला एवं मैंने यह विचार किया है कि इस बालक का गुण संपन्न नाम 'वर्द्धमान' रखा जाये।" राजा सिद्धार्थ के प्रस्ताव का सर्वानुमति से अनुमोदन किया गया। (चित्र M-8) अभयमूर्ति वर्द्धमान कुम्भ एक बार शक्रेन्द्र ने देवसभा के बीच चर्चा करते हुए कहा-“संसार में आज कुमार वर्द्धमान जैसा साहसी, पराक्रमी और अभयमूर्ति दूसरा कोई नहीं है। एक शंकालु देव ने देवेन्द्र के कथन को अतिशयोक्ति कहकर उपहास किया, और कुमार वर्द्धमान के साहस की परीक्षा लेने के लिए धरती पर आया। वर्द्धमान अनेक समवयस्क बालकों के साथ ज्ञातखंड वन में आमलकी क्रीड़ा खेल रहे थे। इस खेल में एक | पद्म विशाल वृक्ष को लक्ष्य बनाकर सभी बालक वृक्ष की तरफ दौड़ते हैं। दौड़ने वालों में से जो बालक सबसे पहले | वृक्ष पर चढ़कर उतर आता है वह विजयी कहलाता है। वर्द्धमान बच्चों के साथ दौड़े, सबसे पहले वृक्ष पर चढ़ गये। तभी नीचे खड़े बच्चों ने देखा-एक भयंकर काला नाग वृक्ष के तने से लिपटा हुआ ऊपर की ओर फन फैलाकर फुकार रहा है। समुद्र कुमार वर्द्धमान ने वृक्ष के तने पर लिपटे काले नाग को देखा. भयाक्रान्त बच्चों की चीख-चिल्लाहट भी सुनी, उन्होंने साथी बालकों से कहा-"शान्त रहो ! डरो मत !" और ऊपर से ही सीधी छलाँग लगाकर नीचे कूद आये। नाग भी फंकारता हआ वर्द्धमान पर झपटा तो कमार ने विचित्र फर्ती से नाग का फन पकड़ लिया और हाथ का एक झटका देकर रस्सी के टुकड़े की तरह खेल के मैदान से एक तरफ ले जाकर छोड़ दिया। (चित्र M-9/1) ___ अब दूसरा खेल प्रारंभ हुआ। इस क्रीड़ा का नाम था तिंदुषक क्रीड़ा। इस खेल में एक वृक्ष को लक्ष्य कर सभी बाल खिलाडी दौडते और जो बालक सबसे पहले वक्ष को छ लेता वह विजयी होता। विजेता बालक दूसरे बच्चों की पीठ पर सवार होकर खेल प्रारंभ होने के स्थान तक जाता। परीक्षा लेने आया देव भी वालक बनकर बच्चों की टोली में मिल गया। खेलते-खेलते हारकर वर्द्धमान को अपनी पीठ पर बैठाया, कुछ दूर चलकर ताड़ जैसा विशाल रौद्र रूप बनाता हुआ आकाश में उड़ने लगा। अन्य बालक चिल्लाने लगे। भय के मारे काँपने लगे। तभी कुमार वर्द्धमान ने उसकी पीठ पर कसकर एक मुक्का मारा, मुक्के की मार लगते ही दैत्य के मुँह से चीख निकली, असह्य पीड़ा से वह कराह उठा। तत्काल अपना रौद्र रूप समेटकर धरती पर आ गया। वर्द्धमान झट से उसकी पीठ से नीचे उतरे। देखा तो दैत्य हवा में गायब हो गया। फिर निधूम देव रूप में उपस्थित होकर वर्द्धमान से क्षमा माँगने लगा। (चित्र M-9/2) अग्नि विमानभवन राशि भगवान महावीर : गृहस्थ-जीवन (११५ ) Bhagavan Mahavir : Life as Householder ternational-2003 -Forprivati onalso-Only indainclibrantirg
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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