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ध्वजा
कुमार वर्द्धमान का अन्तःकरण अपार ऐश्वर्य रूपी सरोवर में, जल में स्थित कमल की भाँति सांसारिक भावनाओं से अलिप्त और संयम की शुचिता से पूर्ण पवित्र था। अपार ऐश्वर्य एवं राज वैभव का आकर्षण कभी उनके मन को नहीं मोह सका। माता-पिता के अत्यधिक स्नेहाग्रहवश महासामन्त समरवीर की रूपवती गुणवती कन्या यशोदा से पाणिग्रहण करना पड़ा। यशोदा से एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया। (चित्र में नीचे-बायें) शिक्षा आदि पूर्ण करने पर प्रियदर्शना का विवाह क्षत्रिय कुमार जमालि के साथ सम्पन्न हुआ। (चित्र M-11)
आचारांग सूत्र के अनुसार वर्द्धमान के तीन नाम बहुत प्रसिद्ध हुए१. वद्धमाणे-वर्द्धमान नाम माता-पिता ने रखा। २. समणे-स्वाभाविक सन्मति होने के कारण समण-श्रमण।
३. महावीरे-महावीर नाम उनकी अप्रतिम वीरता, निर्भीकता, परीषह, सहिष्णुता देखकर देवताओं ने रखा। सन्मति-अत्यन्त निर्मल बुद्धि होने के कारण महावीर का नाम “सन्मति" प्रसिद्ध हुआ। माता-पिता का स्वर्गवास
वर्द्धमान यों तो प्रारंभ से ही वैराग्यमय जीवन जी रहे थे। उनके मन में संसार त्यागकर दीक्षा लेने की उत्कृष्ट भावना थी। परन्तु माता का अत्यधिक स्नेह होने के कारण उन्होंने संकल्प ले रखा था-"माता-पिता |
| सरोवर जब तक विद्यमान रहेंगे मैं दीक्षा की बात नहीं करूँगा।"
जब वर्द्धमान लगभग २८ वर्ष के हुए तो राजा सिद्धार्थ तथा माता त्रिशला बहुत वृद्ध हो चुके थे। जीवन के अंतिम समय में उन्होंने संलेषणा-संथारा कर देह त्याग किया। माता-पिता के स्वर्गवास पश्चात् वर्द्धमान ने बड़े भाई नन्दिवर्धन को दीक्षा लेने का अपना संकल्प बताया। नन्दिवर्धन बोले-"भाई ! अभी माता-पिता के
समुद्र शोक से मेरा हृदय बहुत दुःखी है, तुम्हारा वियोग होने से मेरा दुःख और भी गहरा हो जायेगा। इसलिए मेरा स्नेहाग्रह मानकर दो वर्ष तक और रुको।"
बड़े भाई की बात का सम्मान कर वर्द्धमान दो वर्ष तक फिर घर में रहे। परन्तु इस दो वर्ष के समय में घर में ही साधु की भाँति अत्यन्त संयम व ध्यान में लीन रहते। वे अपने महा अभिनिष्क्रमण (दीक्षा) की पूर्व | विमान
भवन तैयारी में लगे रहे। __ वर्द्धमान का दीक्षा संकल्प जानकर नव लोकान्तिक देवों ने आकर उनसे प्रार्थना की-“हे धर्मोद्योतकारी सूर्य ! आपका यह संकल्प महान् है। संसार को आत्म-कल्याण का मार्ग दिखाइए।" (चित्र M-12/1) राजकुमार वर्द्धमान ने एक वर्ष तक वर्षीदान दिया। वे प्रातःकाल एक प्रहर तक निरन्तर दान देते। रत्न
राशि जिसमें गरीब, अमीर, जो भी उनके समक्ष आकर याचना करता उसे वे वस्त्र, धन आदि मन इच्छित वस्तु प्रदान करते थे। एक वर्ष तक निरन्तर महामेघ की भाँति दान की वर्षा करने के पश्चात् महाभिनिष्क्रमण को प्रस्तुत हुए। (चित्र M-12/2)
निधूम अग्नि
भगवान महावीर : गृहस्थ-जीवन .. .
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Bhagavan Mahavir: Life as Householder
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