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________________ सुपार्श्व चन्द्रप्रभ सुविधि शीतल श्रेयांस वासुपूज्य ध्वजा पदा "अष्टांग निमित्त शास्त्र के वेत्ता विद्वज्जन ! आज रात्रि की शुभ बेला में अंतिम प्रहर के समय प्रियकारिणी विदेहदिन्ना देवी त्रिशला ने १४ शुभ स्वप्न देखे हैं। आप अपने शास्त्र एवं अनुभव ज्ञान के आधार पर इन शुभ स्वप्नों का फल कथन करके हमारी जिज्ञासा को शान्त कीजिए।" निमित्तवेत्ताओं ने देवी त्रिशला के श्रीमुख से स्वप्न सुने। पंडितों ने चिन्तन कर स्वप्न का शुभ फल इस प्रकार बताया "राजराजेन्द्र महाराज सिद्धार्थ ! स्वप्नशास्त्र के अनुसार ७२ शुभ स्वप्न होते हैं। उनमें ४२ सामान्य फल देने वाले और ३० शुभ फल देने वाले हैं। भाग्यशालिनी देवी त्रिशला ने १४ महास्वप्न देखे हैं वे अतिशय शुभ तथा दिव्य फल की सूचना करते हैं। इन स्वप्नों के अनुसार देवी त्रिशला एक चक्रवर्ती पुत्र की माता होंगी.किन्तु। महाराज ! शास्त्रों के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट् तो १२ हो चुके हैं, धर्म-चक्रवर्ती तीर्थंकर अभी एक और होंगे: । इसलिए सभी लक्षण और परिस्थितियाँ इस सत्य को उद्घाटित करते हैं कि आपका लोकमंगलकारी पुत्र धर्म-चक्रवर्ती होगा ।" . राजा सिद्धार्थ ने स्वप्न-पाठकों को भरपूर दान दक्षिणा दी और सत्कार सम्मानपूर्वक विदा किया। (चित्र M-6) जन्म-कल्याणक : जन-कल्याणक का उद्घोष सरोवर वसन्त का महीना, प्रकृति अपने संपूर्ण सौन्दर्य के साथ विकसित थी। दिशाएँ स्वच्छ और निर्मल थीं। शीतल सुगन्धित पवन मन्द-मन्द गति से प्रकृति के कण-कण को आनन्दित कर रही थी। मध्य रात्रि का शान्त नीरव समय। धरती और आकाश पर चारों ओर दूधिया चाँदनी छितराई हुई थी। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की शुभ तिथि। उस पुण्य घड़ी में माता त्रिशला ने एक दिव्य शिशु को जन्म दिया। शिशु क्या था, एक दिव्य प्रकाश पुंज था। धरती पर प्रथम चरण रखते ही क्षण-भर के लिए समूचा संसार आलोक से जगमगा उठा। प्रकाश की वह दिव्य किरण देखने के लिए जैसे अंधों को भी आँखें मिल गई। नरक की घोर तमिस्रा में प्रकाश फैल गया। नारक जीव अपनी वेदना भूल गये। कलह संघर्ष और युद्ध वन्द हो गये। जन्म-भर के भूखे-प्यासे जन जैसे अमृत पीकर अपूर्व तृप्ति का अनुभव करने लगे। सर्वत्र शीतल | विमानसुगन्धित आरोग्यदायी हवाएँ बहने लगीं। असाध्य रोगी भी आरोग्य का अनुभव करने लग गये। जन्मजात | भवन वैरियों के मन में भी मैत्री की लहरें उठने लगीं। तीनों लोकों में एक अज्ञात आनन्द की हिलोरें उठ रही थीं, शिशु के जन्म लेते ही समूचे संसार के वातावरण में कुछ समय के लिए अद्भुत परिवर्तन आ गया। ___ भगवान के जन्म का सुखद संवाद सुनकर समस्त देवलोकवासी हर्ष से नाचने लगे। सर्वप्रथम देवराज शक्रेन्द्र ने आकर भगवान को नमस्कार किया. फिर रत्न कक्षि धारिणी माता त्रिशला की तीन बार प्रदक्षिणा की। सभी देव-देवियाँ. गंधर्व, किन्नरियों ने मिलकर गीत गाये, नृत्य किया और तीर्थंकर देव का जन्म कल्याणक उत्सव मनाया। सर्वप्रथम छप्पन दिशाकुमारियों ने सूतिका कर्म किया तथा देवताओं ने भगवान का जन्म उत्सव मनाया। शक्रेन्द्र आदि देवताओं ने मिलकर मेरु पर्वत पर ले जाकर भगवान का जन्म अभिषेक किया, जन्म महिमा की। निधूम अग्नि भगवान महावीर : गृहस्थ-जीवन ( ११३ ) Bhagavan Mahavir : Life as Householder ion International20 AAAA
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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